Saturday 23 July 2016

कबूतरबाजी से ट्रांसजेंडरों की एंट्री तक ओलंपिक

खेलों का महाकुंभ यानी ओलंपिक पांच अगस्त से ब्राजील के शहर रियो में शुरू हो जाएगा। इस साल 206 देश ओलंपिक में हिस्सा ले रहे हैं। 116 साल पहले इस आयोजन में जहां कबूतरों को मारने पर मेडल मिलता था, वहीं आज ट्रांसजेंडर भी ओलंपिक जीतने का सपना देख रहे हैं।

बतौर पुुरुष जन्मे और अब ट्रांसजेंडर बन चुके दो ब्रिटिश एथलीटों के इस साल रियो ओलंपिक में भाग लेेने की उम्मीद है। उनके नाम का खुलासा नहीं किया गया है। ऐसा इसलिए ताकि खेल के दौरान वह शर्मिंदगी का शिकार न हों। अगर दोनों प्रतियोगिता का हिस्सा बनते हैं तो ऐसा पहली बार होगा, जब ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर भाग लेंगे। दोनों महिला प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेंगे। दौड़, मुक्केबाजी और कुश्ती ओलंपिक के वह खेल हैं, जो कोई 1200 साल से खेले जा रहे हैं। हालांकि तब ओलंपिक को आधिकारिक दर्जा नहीं मिला था। उस समय योद्धाओं के बीच प्रतिस्पर्धा के तौर पर खेलों का आयोजन किया जाता था, जो 776 ईसा पूर्व अपने आधिकारिक अस्तित्व में आए। लेकिन 394 ईस्वी के बाद रोम के सम्राट थियोडोडिस ने ओलंपिक को मूर्ति पूजा का उत्सव करार देते हुए प्रतिबंधित कर दिया। 19वीं शताब्दी में यूरोप में यह परंपरा फिर जिंदा हुई। फ्रांस के रहने वाले बैरो पियरे डी कुवर्तेन ने इसे शुरू करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने दो लक्ष्य रखे। पहला खेल को लोकप्रिय बनाना दूसरा, शांतिपूर्ण प्रतिस्पर्धा। 1896 में पहली बार ग्रीस की राजधानी एथेंस में ओलंपिक आयोजित हुए। करीब 34 साल तक ओलंपिक लोकप्रिय होने के लिए जूझता रहा। वजह थी, भव्यता की कमी और कई अटपटे खेल। अब 1900 में हुए पेरिस ओलंपिक को ही जानिये, कबूतरों को मारने की प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। 300 कबूतर मारे गए थे। बेल्जियम के लिओन डी इसके चैंपियन बने थे, लेकिन 1930 में सब बदल गया। बर्लिन ओलंपिक को राजनीतिक और सामाजिक समर्थन मिला। अटपटे खेल बंद किए गए और ओलंपिक चल निकला। 1950 के दशक में सोवियत संघ और अमेरिका ने भी इस खेल में हिस्सा लेना शुरू किया। इसके बाद तो ओलंपिक खेलों का महाकुंभ बन गया। 

यूरोप की देन को 34 साल तक अमेरिका
व सोवियत संघ ने बनाया जंग का मैदान

बैरो पियरे डी कुवर्तेन ने ओलंपिक को शुरू करते समय शांतिपूर्ण आयोजन का जो लक्ष्य रखा, वह पूरा नहीं हो सका। 1968 में मैक्सिको ओलंपिक में अमेरिका से पदक तालिका में पीछे रहना सोवियत संघ को ऐसा अखरा कि 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में सोवियत संघ ने अमेरिका से एक तिहाई ज्यादा पदक जीतकर इसका बदला लिया। 1980 में मास्को ओलंपिक में अमेरिका और पश्चिम के कई देशों ने हिस्सा नहीं लिया तो 1984 में सोवियत संघ ने भी लॉस एंजिलिस ओलंपिक का बहिष्कार कर दिया। 1988 के सियोल ओलंपिक में सोवियत संघ हावी रहा तो 1992 में विघटन के बावजूद एक साथ शामिल होकर सोवियत यूनियन ने बार्सिलोना ओलंपिक में शीर्ष स्थान हासिल किया। इसके बाद के आयोजनों में अमेरिका प्रथम स्थान पर रहा।

चीन ने की धमाकेदार शुरुआत
साल 2000 के बाद चीन भी ओलंपिक पदक तालिका में अच्छी जगह बनाने लगा। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में उसने सबसे ज्यादा पदक जीते। इसे अब तक का सर्वश्रेष्ठ आयोजन माना जाता है। 


जब पेड़ की टहनी मेडल के तौर पर
मिलती थी तब भी वैसा ही जोश था

आज खिलाड़ी गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल के लिए भिड़ते हैं, लेकिन ओलंपिक के शुरुआती दिनों में यह पदक नहीं मिलते थे। तब जीतने वाले को जैतून के पेड़ की टहनी और माला इनाम में दी जाती थी। लेकिन उस समय भी जीत का जज्बा और जोश वैसा ही था, जैसा आज है।

...जो एक बार ही खेले गए
भारत में सबसे लोकप्रिय क्रिकेट ओलंपिक में सिर्फ एक बार खेला गया। 1900 के पेरिस ओलंपिक के बाद 116 साल से यह महाकुंभ में शामिल होने की बाट जोह रहा है। रग्बी, गोल्फ, रस्साकसी, स्टैंडिंग हाईजंप भी एक बार ही खेले गए। 1904 और 1932 में सामूहिक झूला और जिमभनास्टिक प्रतियोगिता हुई फिर नहीं। 1912 में पिस्तौल युद्ध भी खेला गया था। इसमें एक डमी के गले पर निशाना लगाया गया।

80 साल में ओलंपिक मशाल के रंग
1936 में बर्लिन ओलंपिक में पहली बार मशाल यात्रा शुरू हुई। यूनान के प्राचीन शहर ओलंपिया स्थित हीरा के मंदिर से ओलंपिक मशाल का सफर शुरू होता है। 1952 में ओस्लो में हुए ओलंपिक में पहली बार विमान के जरिए मशाल को ले जाया गया। 1956 के स्टॉकहोम ओलंपिक में घोड़े की पीठ पर और 2000 के सिडनी ओलंपिक में ऊंटों पर ओलंपिक मशाल ले जाई गई। 1960 के रोम ओलंपिक में पहली बार मशाल यात्रा का टीवी पर सीधा प्रसारण हुआ। आज की मशाल गैस से जलती है।



भारत तो बहुत पीछे, लेकिन हॉकी में नाम कमाया
ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन अब तक बेहद फीका रहा है। 100 साल में हम सिर्फ 20 पदक जीत पाए हैं। इसमें 11 हॉकी के हैं। भारतीय हॉकी टीम ने 28 साल तक ओलंपिक में राज किया। आठ स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य पदक जीते। 1980 में मास्को ओलंपिक में आखिरी बार स्वर्ण जीता। लेकिन इसके बाद पीछे रह गए। साल 2000 में सिडनी ओलंपिक में भारत की कर्णम मलेश्वरी ने भारोत्तोलन में कांस्य पदक जीतकर नाम रोशन किया। आजाद भारत के लिए पदक जीतने वाले केडी जाधव पहले खिलाड़ी थे। उन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में फ्री स्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक जीता था। हालांकि 1900 के पेरिस ओलंपिक में नार्मन प्रिटचार्ड ने भारत की ओर से हिस्सा लेते हुए एथलेटिक्स में दो पदक जीते थे।

रियो में भारत के सितारे
- 99 खिलाड़ियों के दल में 32 खिलाड़ी हॉकी से हैं। 16 पुरुष और 16 खिलाड़ी महिला टीम में हैं।
- 07 खिलाड़ी (चार महिलाएं और तीन पुरुष) बैडमिंटन में हिस्सा लेंगे। साइना नेहवाल भी इसमें शामिल।
- 12 निशानेबाज भी रियो ओलंपिक का हिस्सा बनेंगे। पिछली बार के पदक विजेता गगन नारंग से है उम्मीद।
- 19 भारतीय एथीलीट रियो ओलंपिक में भाग लेंगे। हॉकी के बाद यह देश का दूसरा सबसे बड़ा दल है।
...लेकिन दो बार के पदक विजेता सुशील कुमार की कमी खलेगी। इस साल ओलंपिक में आठ पहलवान शामिल हो रहे हैं।

- 194 देशों के 10,290 एथीलीट रियो ओलंपिक में भाग ले रहे हैं।
- 28 खेलों के लिए 306 आयोजन किए जाएंगे।
- 400 एथीलीट अकेले चीन के ओलंपिक में भाग लेने पहुंच रहे हैं।
- 1996 और 2000 में ओलंपिक से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को पांच अरब डॉलर की आय हुई थी।
- 35 हजार लोगों को रोजगार मिला था लंदन में हुए ओलंपिक के दौरान।



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