Saturday 23 September 2017

ताकि 'भरोसे' में न पड़े दरार..

यह महज संयोग ही है कि जब देश के पीएम नरेंद्र मोदी काशी के दौरे पर हैं उसी वक्‍त में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में बेटियां अपने वजूद की लड़ाई  लड़ रही हैं। ऐसे में सवाल है कि पीएम और यहां के सांसद मोदी का रिएक्‍शन क्‍या होना चाहिए? क्‍या उन्‍हें अपने रुट में बदलाव कर लेना चाहिए या फिर वहां जाकर बेटियों के इस मुहिम को बल देना चाहिए। BHU की लड़कियों का दर्द साधारण नहीं है। एक बार के लिए मान लेते हैं कि उनकी पीड़ा सुनने की पीएम मोदी को फुर्सत नहीं है लेकिन राज्‍य के सीएम योगी आदित्‍यनाथ भी क्‍यों खामोश हैं। पिछले दिनों मोदी जी ने जिस तरह ट्रिपल तलाक पर सक्रियता दिखाकर महिलाओं को न्‍याय दिलाया वो बेहद सराहनीय था। लेकिन इस मोर्चे पर इतना कमजोर होने की क्‍या जरूरत थी, ये समझ से परे है।

दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी किसी मोर्चे पर अबूझ पहेली बने हैं। इससे पहले भी तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिसपर उनका रिएक्‍शन थोड़ी देर या फिर नहीं भी आया है। मीडिया की नजर में शायद खामोशी या फिर रुट बदलना उनका 'मास्‍टर स्‍ट्रोक'हो लेकिन उनके इस रंग से लोगों के भरोसे को सेंध जरूर लग रहा है। मैंने पिछले 3 सालों में तमाम ऐसे लोगों के भरोसे में सेंध लगते देखा है जिन्‍हें कभी यकीं था। कुछ लोगों की नजर में आम जनता का यही भरोसा 'भक्‍त' की संज्ञा दे चुका है। मैं भी उन लोगों की नजर में भक्‍तों में से ही हूं। लेकिन सच भी यह है कि उन भक्‍तों के भरोसे में दरार पड़ रही है। अधिकतर विरोधियों के लिए मोदी सरकार की ज्‍यादा से ज्‍यादा नाकामी ही सुकून देती है, लेकिन जो लोग भरोसा करते हैं उनकी नजर में यह नाकामी सिर्फ एक सवाल है। ये भी जान लीजिए कि उनके लिए यह तब तक सवाल है जब तक कि इसका कोई ठोस जवाब नहीं मिल जाता है। वर्ना वो दिन भी आ जाएंगे जब मोदी सरकार की तुलना भी कांग्रेस के 'काल' से की जाने लगेगी।

आर्थिक मोर्चे पर नाकामी, महंगाई, रोजगार के अवसर की कमी, अपने कठोर फैसलों को जस्टिफाई न कर पाना, बेवजह इवेंटबाजी या बयानबाजी और न जाने क्‍या - क्‍या। ऐसे तमाम मौके आए हैं जब मोदी सरकार ने इसके परिणाम की चिंता नहीं की है। यह ठीक वैसे ही है जैसे कांग्रेस ने 2010 के बाद किया था। कम से कम भाजपा सरकार को कांग्रेस के इस रवैये का परिणाम तो याद ही होगा । 

Monday 4 September 2017

कंगना से क्रश की वजह..

वैसे तो मेरी बॉलीवुड एक्‍ट्रेसेस से कभी भी, किसी भी तरह की एकतरफा इश्‍कबाजी नहीं रही और न ही मैंने कभी किसी एक्‍ट्रेसेस की कल्‍पना कर अपनी दुनिया को आभासी बनाने की कोशिश की। लेकिन कंगना रनौट के प्रति मेरा ये ज्ञान फेल होता नजर आ रहा है। कंगना रनोत मतलब बेबाक, बेपरवाह, बिंदास और विवादित। फिल्म जगत का ऐसा नाम, जिसे आप पसंद करें या नापसंद, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते। मात्र 10 साल में कंगना ने फिल्मों के ग्रंथ पर कभी न मिटने वाली स्याही से छाप छोड़ी है।


मेरी कंगना से क्रश की वजह उनकी हिम्‍मत है। पिछले दिनों कंगना रनौट ने जब इंडिया टीवी के प्रोग्राम आप की अदालत में बोलना शुरू किया तो अच्‍छे – अच्‍छों की बोलती बंद कर दी। हिमाचल के छोटे से शहर की इस बोल्‍ड और बिंदास लड़की की बेबाकी ने मुझे दीवाना बना दिया है। परिवार के खिलाफ कौन सी लड़की बोल पाती है, वो भी दुनिया के सामने..लेकिन कंगना ने बोला भी और परिवारों में भाई-बहन के अंतर को भी परत दर परत खोल दिया. ..दरअसल, 
कंगना बॉलीवुड की उस भीड़ से बिल्‍कुल अलग हैं, जो दोगली जिंदगी जीने में यकीं करती है। वह उन लोगों में से नहीं हैं जो बॉलीवुड के चाटूकारों की श्रेणी में आता है। वह उनमें से हैं जो हर कदम पर बॉलीवुड के उस पिंजरे को चोट पहुंचाती आ रही हैं जिन्‍हें हेमामालिनी, वैजयंतीमाला, माधुरी दीक्षित, श्रीदेवी, काजोल और करीना सरीखी अभिनेत्रियों ने भी तोड़ने की कोशिश नहीं की। कंगना के बिंदास अंदाज को देखकर मुझे बॉलीवुड की जमात बेहद स्‍वार्थी नजर आती है।



करन जौहर से लेकर जावेद अख्‍तर तक   


कंगना ने बॉलीवुड के लगभग हर ताकतवर लॉबी को चुनौती दी है। वर्ना रितिक रोशन जैसे एक्‍टर से टक्‍कर कौन ले सकता है। आदित्‍य पंचोली फिर शेखर सुमन के बेटे अध्‍ध्‍यन और फिर कंगना ने जिस तरीके से बॉलीवुड के बच्‍चा पार्टी को लॉन्‍च करने का ठेका उठाने वाले करण जौहर को ललकारा उसने तो मेरे दिल के तार छेड़ दिए। खासतौर पर करण जौहर वो शख्‍स है जिसको, प्रेस कॉन्‍फ्रेंस से लेकर फिल्‍म प्रमोशन तक बड़ी – बड़ी एक्‍ट्रेसेस खुशामद करती नजर आती हैं। वह यहीं नहीं रुकीं, उन्‍होंने इशारों में बॉलीवुड के टॉप राइटर जावेद अख्तर को भी लपेटे में ले लिया। यह वही वक्‍त था जब कंगना मेरे दिलों दिमाग में घर कर रही थीं।  

हो सकता है आप इसे उनकी आने वाली फिल्‍म सिमरन का प्रमोशन कहें। हो सकता है कंगना कल को बॉलीवुड लॉबी की शिकार हो जाएं। हो सकता है उनको फिल्‍में न मिले। हो सकता है वह बॉलीवुड से बॉयकॉट हो जाएं। हो सकता है, जो हमारी सोच में न हो कुछ ऐसा बुरा हो जाए। लेकिन यह तो तय है कि कंगना की ठसक कभी कम नहीं होने वाली है।