Tuesday 9 April 2019

न्यूज रूम में सीवान और शहाबुद्दीन...

            

और, तुम्हारे सीवान के क्या हाल हैं?  
क्या लगता है, कौन जीतेगा?
ये दो ऐसे सवाल हैं जो इन दिनों न्यूज रूम में मुझसे कोई न कोई पूछ ही लेता है। दरअसल, चुनावी मौसम में न्यूज रूम का माहौल भी बिल्कुल चुनावी होता है। कभी न्यूज रूम में आप आएंगे तो आपको हर सीट की जानकारी और हर सीट के समीकरण बताने वाले ढेरों साथी मिल जाएंगे।  

न्यूज रूम में कई ऐसे भी साथी मिलेंगे जो अपनेअपने बीट यानि क्षेत्र में पारंगत हैं लेकिन उन्हें राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। लेकिन जो साथी जिस शहर का होता है उससे उसके लोकसभा क्षेत्र के समीकरण को समझने की हर कोई कोशिश करता है।  खासतौर पर उन सीटों की चर्चा जरूर होती है, जो अकसर चर्चा में रहती हैं।

इन दिनों न्यूज रूम में बिहार की जिन सीटों पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है उनमें बेगूसराय, पटना साहिब, नवादा, पूर्णिया और सीवान हैं।
             
न्यूज रूम में संभवत: हर किसी को मालूम हैमैं सीवान से हूं!  यही वजह है कि राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले साथी  मेरे बिजनेस पत्रकार होने के बावजूद मुझसे हर दो से तीन दिन पर मेरी सीट पर आते हैं और  सीवान लोकसभा के समीकरणों को लेकर बातें करते हैं। मैंने भी कभी इस बात को छुपाया नहीं, मैं भी अपनी समझ के हिसाब से ज्ञान दे ही देता हूं।

लेकिन इन बातों या बहस में जो एक बात कॉमन रहती है वो हैशहाबुद्दीन

शहाबुद्दीन वो नाम है जिसने लंबे समय तक सीवान मे राज किया और लंबे समय से ही जेल में बंद है। ये बातें पुरानी हो चुकी हैं, अब जिले में कोई नहीं चाहता कि शहाबुद्दीन के नाम पर राजनीति हो। लेकिन कोई यह भी नहीं चाहता कि शहाबुद्दीन के नाम के बिना राजनीति हो।  सीवान क्या, बिहार भर में सीवान की बात होती है तो राजद को शहाबुद्दीन के विकास की बात करनी होती है, बीजेपीजेडीयू को शहाबुद्दीन के कारनामों की चर्चा करनी होती है।


राजद और खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग यह मानने को तैयार नहीं होते कि शहाबुद्दीन किसी जनआंंदोलन नहीं बल्कि तेजाब कांड में जेल में बंद हैं। उसी तरह बीजेपी और जेडीयू यह मानने को तैयार नहीं रहती कि शहाबुद्दीन ने सीवान में विकास की एक नई गाथा लिखी।  

शहाबुद्दीन का सच यह है कि बतौर सांसद विकास तो किए लेकिेन अपराध की भी नई परिभाषा लिखी। शहाबुद्दीन देश के एकमात्र ऐसे सांसद रहे जिनके नाम हत्या, फिरौती समेत सबसे ज्यादा आपराधिक मामले थे।

लेकिन जब विकास की बात होती है तो उसमें भी अव्वल हैं। सीवान के स्टेडियम, कॉलेज, अस्पताल की बुलंद नींव शहाबुद्दीन के नाम है।  जिस दौर में नक्सली या रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया बिहार में विस्तार कर रहे थे तब शहाबुद्दीन एक चट्टान की तरह सीवान की सीमाओं पर डटे थे।

खैरन्यूज रूम में मुद्दे पर लौटते हैं

न्यूज रूम में बात या बहस के दौरान लोग मुझसे दो तरह की बातें कहते हैं
पहली तरह बात में लोग सीधे मुझे यह बताते हैं कि सीवान में शहाबुद्दीन ने बहुत जुल्म किया है
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वहीं दूसरी तरह की बात में लोग कहते हैंकुछ भी हो, शहाबुद्दीन ने काम तो किया ही है

इन दोनों तरह की बात में मेरे विचार कहीं नहीं होते हैं

ये खुद मेरे साथियों का जजमेंट होता है!  संभवत: जो लोगों को दिखाया गया है वही बातें दिल्ली में बैठे हमारे साथी भी अपनी समझ के आधार पर करते हैं। लेकिन हैरानी इस बात की भी है कि सालों से जेल में बंद शहाबुद्दीन पर ही सीवान का कांटा क्यों अटक जाता है। हम उन मुद्दों की बात क्यों नहीं करते जो सीवान को नए तरीके की सियासत सिखाए..

इस सवाल के जवाब की जड़ भी सीवान में ही है..नई पौध हो या पुरानी पीढ़ी, हर किसी के केंद्र में जाति या धर्म है..यह इतना नस—नस में है कि हम इसके बिना रह नहीं सकते हैं। इससे मैं खुद को अलग नहीं मानता हूं!  लेकिन न्यूज रूम में मेरे इरादे और बातें सीवान और यहां के विकास पर फोकस होती हैं, ये मैं खुद से नजरें मिलाकर, जरूर कह सकता हूं!