Thursday 22 June 2017

टेलिकॉम कंपनियां दे रही हैं भारी डिस्‍काउंट, आप भी उठाएं फायदा


नई दिल्‍ली। वैसे तो टे‍लिकॉम इंडस्‍ट्री में रिलायंस जियो की एंट्री के बाद से ही फ्री सर्विसेज और डिस्‍काउंट का दौर चल निकला है। एयरटेल, वोडाफोन समेत लगभग सभी बड़ी टेलिकॉम कंपनियों ने फ्री कॉलिंग, मैसेज और फ्री डाटा जैसे ऑफर दे रही हैं। यही नहीं, कंपनियां अगल – अलग तरीके से भी कस्‍टमर्स को ऑफर दे रही हैं। इन ऑफर्स को पोस्‍टपेड और प्रीपेड कस्‍टमर्स खूब एंज्‍वॉय कर रहे हैं। किसी भी टेलिकॉम कंपनी के प्रीपेड कस्‍टमर्स के लिए अच्‍छी बात होती है कि वह अपने सुविधा के अनुसार प्‍लान रिचार्ज करते हैं और फ्री सर्विसेज का फायदा उठाते हैं।


हालांकि पोस्‍टपेड कस्‍टमर्स के साथ ऐसा नहीं है। दरअसल, पोस्‍टपेड कस्‍टमर्स इस फ्री सर्विसेज को एंन्‍ज्‍वॉय तो करते हैं, उसके एवज में कस्‍टमर्स को एक्टिव कराए गए प्‍लान के महंगे मंथली चार्ज (रेंटल ) हर हाल में देने ही पड़ते हैं। लेकिन क्‍या आपको पता है, फ्री सर्विसेज जारी रखते हुए भी कंपनियां मंथली चार्ज में डिस्‍काउंट देती हैं। आज हम आपको उसी तरीके के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके जरिए रेंटल में  डिस्‍काउंट ले सकते हैं।   

कैसे ले सकते हैं डिस्‍काउंट
दरअसल, टेलिकॉम कंपनियां इन दिनों अपने कस्‍टमर्स को लुभाने और नेटवर्क के साथ बरकरार रखने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही हैं। कस्‍टमर्स को अलग – अलग तरह की बेनिफिट दी जा रही हैं। इसी के तहत कंपनियां पोस्‍टपेड कस्‍टमर्स को रेंटल तक में डिस्‍काउंट दे रही हैं।  

कॉल या मैसेज से उठाएं फायदा

हमें कई ऐसे कस्‍टमर्स मिले हैं जिन्‍हें कस्‍टमर केयर में कॉल करने या फिर पोर्ट का मैसेज डालने पर कंपनी की ओर से रेंटल में डिस्‍काउंट दे दिया गया है। हालांकि इस मामले में टेलिकॉम कंपनियां खुलकर कुछ बोलने से बच रही हैं। लेकिन वह इस बात से भी सहमत हैं कि अपने पुराने और ईमानदार कस्‍टमर्स को अपने नेटवर्क में बनाए रखने के लिए डिस्‍काउंट दिया जाता है।    

कैसे ले सकते हैं डिस्‍काउंट

कुछ कस्‍टमर्स का दावा है कि उन्‍होंने कस्‍टमर केयर में कॉल करने के बाद सीनियर अधिकारियों से नेटवर्क छोड़ने की बात कही तो उन्‍हें तमाम फ्री सर्विसेज को बरकरार रखते हुए किफायती ऑफर दिया गया। वहीं कुछ कस्‍टमर्स ने बताया कि जब उन्‍होंने PORT का मैसेज 1900 पर भेजा उसके बाद कंपनी की ओर से कॉल आया और उन्‍हें डिस्‍काउंट रेंटल के साथ कई आकर्षक ऑफर दिए गए।  




Tuesday 20 June 2017

एक लीजेंड का यूं जाना..

करीब एक साल पहले की बात है , अनिल कुंबले टीम इंडिया के कोच बने थे। दिल से मुझे खुशी हुई लेकिन आज जब उन्‍होंने टीम के कोच पद छोड़ा है तो बेहद आहत हूं। दरअसल, अनिल कुंबले ने बतौर खिलाड़ी , बतौर कोच एक लड़ाके की भूमिका निभाई। कुंबले की छवि फिरोजशाह कोटला में 74 रन देकर दस विकेट लेने वाले लेग स्पिनर या विवादास्‍पद 'मंकीगेट' सीरीज के दौरान ऑस्‍ट्रेलिया में आगे बढ़कर लीडरशिप करने से ज्‍यादा है। अगर कुंबले के कोच पद से इस्तीफा देने की वजह कुंबले से विवाद है या फिर पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में मिली हार की वजह से उन्हें यह पद गंवाना पड़ा है तो दोनों ही स्थितियों में उनके साथ अन्यया हुआ है।
लंबे समय तक मूंछे रखने और सज्जन से दिखने वाले कुंबले ने इंजीनियरिग की पढ़ाई की है। वह मैदान के बाहर भी और अंदर भी किसी इंजीनियर सरीखे ही दिखते हैं, सीधे और भोले से। चेहरे से भोले दिखने वाले अनिल कुंबले बतौर गेंदबाज कितने 'दबंग' रहे हैं?, जिन्होंने उनके सामने बल्लेबाजी की है, वो सब समय - समय पर बताते रहे हैं। कुंबले के रिकॉर्ड और उनकी शख्सियत के बारे में क्रिकेट की समझ रखने वाला हर इंसान जानता है लेकिन बहुत कम लोग इस रोचक तथ्य को जानते होंगे कि 6.2 इंच के अनिल के नाम के साथ लगा 'कुंबले' उनकी जाति नहीं बल्कि गांव का नाम है। बंगलोर में जन्में, कुंबले को कम उम्र से ही क्रिकेट में रूचि पैदा हो गई थी। वह बी एस चंद्रशेखर जैसे क्रिकेटरों का खेल देखते हुए बडे हुए। कुंबले का वैवाहिक जीवन भी बेहद ही दिलचस्प रहा है। उनका दिल तलाकशुदा चेतना पर आया। चेतना की पहले पति से एक बेटी आरुनी  भी थी लेकिन कुंबले ने उसे हाथों हाथ लिया और 1999 में शादी कर ली। शादी के बाद उनके दो बच्चे, बेटा मायस कुंबले और बेटी स्वास्ती हुए।  कुंबले ने अपने सम्मान और त्याग को टीम और परिवार के हित से ऊपर कभी नहीं रखा। जब जरूरत पड़ी तो उन्होंने पत्नी चेतना के लिए उनके पहले पति से कानूनी लड़ाई भी लड़ी । यह लड़ाई बेटी को हासिल करने की थी। कुंबले ने इस लड़ाई में चेतना का हर कदम पर साथ दिया और उनकी शख्सियत के मुताबिक उन्हें जीत भी मिली। कोई यह कैसे भूल सकता है जब वेस्टइंडीज में भारत का मैच हो रहा था। उस वक्त कुंबले को पहले कहा गया कि वो मैच में खेल रहे हैं, फिर कहा गया कि नहीं खेल रहे हैं, फिर दोबारा से कहा गया कि खेल रहे हैं।  कुंबले जिंक का पेंट लगाकर मैदान का चक्कर काट रहे थे। आख़िरकार जब टीम की घोषणा हुई तो उसमें कुंबले का नाम नहीं था। एक सीनियर खिलाड़ी के साथ इस तरह का बर्ताव हुआ, लेकिन जब भारत टेस्ट मैच जीत गया तो सबसे अधिक खुश जो खिलाड़ी था वो थे अनिल कुंबले। उस वक्त वो अपने कैमरे से पूरी टीम की खुशी मनाते हुए फोटो खींच रहे थे। कुंबले के साथ यह हरकत कप्तान सौरव गांगुली ने की थी फिर भी वह कुंबले को 'जेंटलमैन' कहते हैं क्योंकि उन्हों ने कभी निजी मनमुटाव को सामने नहीं आने दिया।

Monday 19 June 2017

13 की उम्र में बिहार की इस महिला ने छोड़ा स्कू्ल, आज है ब्रिटेन की बिजनेसवुमन

नई दिल्‍ली। जरा सोचिए, जब किसी लड़की को 13 साल की उम्र में शादी के लिए पढ़ाई छोड़ने को मजबूर किया गया होगा तब उस पर क्‍या गुजरी होगी। ऐसी स्थिति में आमतौर पर लड़कियां पढ़ाई को बहुत पीछे छोड़ देती हैं और फिर उनका पूरा ध्‍यान परिवार पर हो जाता है। लेकिन बिहार के सीतामढ़ी की आशा खेमका उन लड़कियों में से नहीं थीं। सिर्फ 15 साल की उम्र में शादी होने के बाद उन्‍होंने 36 साल की उम्र में अपनी पहली डिग्री लेने का फैसला और आज ब्रिटेन के सबसे बड़े कॉलेजों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की सीईओ और प्रिंसिपल हैं। आशा खेमका को हाल ही एशियन बिजनेसवुमन ऑफ द ईयर का खिताब दिया गया है। आइए जानते हैं, आशा खेमका की सक्‍सेस स्‍टोरी के बारे में  


बिहार से ब्रिटेन का सफर
मां की मौत के बाद आशा खेमका की शादी हो गई, तब उनकी उम्र सिर्फ 15 साल थी। शादी के करीब 11 साल बाद खेमका जिंदगी में बड़ा बदलाव आया। दरअसल, जब वह 26 साल की थीं तभी उनके डॉक्टर पति शंकर अग्रवाल ने इंग्‍लैंड में नौकरी पक्की कर ली थी। फिर वो अपने पति के पास अपने बच्चों के साथ ब्रिटेन पहुंचीं।

अंग्रेजी बनी सबसे बड़ी मुसीबत
इंग्‍लैंड आने के बाद हिंदी इलाके की आशा खेमका के लिए सबसे बड़ी मुसीबत अंग्रेजी बनी लेकिन कॉन्फिडेंस कम नहीं हुआ। यहां उन्‍होंने टूटी-फूटी अंग्रेजी में साथी महिलाओं से बात करना शुरू किया।  कुछ सालों बाद कैड्रिफ यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनजमेंट की डिग्री ली। एक इंटरव्‍यू में खेमका ने बताया था कि अंग्रेजी में कमजोर होने की वजह से पढ़ाई के दौरान वह प्रोजेक्‍ट अपने बच्‍चों से बनवाती थीं। और टीवी पर बच्चों के लिए आने वाले शो को देखकर अंग्रेजी सीखती थीं।

ऐसे बन गईं प्रिंसिपल
पढ़ाई पूरी करने के बाद आशा ऑस्‍वेस्‍ट्री कॉलेज में पढ़ाने लगीं। अपने छात्रों की फेवरेट टीचर थीं। इसके बाद ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज में लेक्‍चरर बन गईं। दिलचस्‍प बात यह है कि आज वह इसी कॉलेज की सीईओ और प्रिसिंपल हैं।

मिला ब्रिटेन का सबसे बड़ा सम्‍मान
आशा को 2008 में ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायरसे सम्मानित किया गया।  2013 में ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर' का सम्मान से नवाजा गया था। उनसे पूर्व ये सम्मान किसी भारतीय मूल के शख्स को 1931 में मिला था। तब धार स्टेट की महारानी लक्ष्मी देवी बाई साहिबा को ये डेम पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

          

Saturday 17 June 2017

बिहार के इस लाल ने सीईओ पद से दिया इस्तीफा, कभी आमिर खान के थे फेवरेट

आमतौर पर जब किसी शख्स की क्रिएटिविटी या टैलेंट को रिजेक्ट कर दिया जाता है तो वह हार मान लेता है। लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर के अरुनाभ कुमार उन लोगों में से नहीं थे। इन दिनों ऑनलाइन एंटरटेनमेंट चैनल द वायरल फीवर (TVF ) के फाउंडर अरुनाभ पर यौन उत्पीड़न जैसा गंभीर आरोप लगा है और उन्हें कंपनी के सीईओ पद से भी हाथ धोना पड़ा है।


क्या  है TVF
द वायरल फीवर ऑनलाइन एंटरटेनमेंट चैनल है। यह यूट्यूब चैनल सेलेब्स, पॉलिटिशियन और मीडिया के कई चर्चित शख्सियतों की पैरेडी वीडियोज बना चुका है। इस वीडियो में डब आवाज और मफ फेस का इस्तेतमाल किया जाता है।      
हर सेमेस्टर में बदलता था मूड
34 साल के अरुनाभ ने IIT खड़गपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। उन्होंने दूसरी बार में IIT इंट्रेंस टेस्ट क्वालिफाई किया। एक इंटरव्यू में अरुनाभ ने बताया था कि पिता की जिद के कारण IIT में एडमिशन लिया लेकिन पढ़ाई के दौरान वह हर सेमेस्टर में लक्ष्य बदलते थे। पहले सेमेस्टर में वह इक्नॉमिस्टि बनना चाहते थे तो दूसरे में एमबीए की पढ़ाई करने की सोची। वहीं तीसरे और चौथे सेमेस्टर में वह प्रोग्रामर और यूपीएससी की तैयारी करने का मन बना रहे थे। 
आमिर खान भी हुए इंप्रेस
अरुनाभ ने आईआईटी से ग्रेजुएट होने के बाद मुंबई की ओर रूख कर लिया। यहां यूएस एयरफोर्स प्रोजेक्ट में काम करने के बाद उन्हों ने कुछ शॉर्ट फिल्म बनाए। शानदार रिस्पॉस मिलने के बाद उन्होंने असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में कैरियर को आगे बढ़ाने के बारे में सोची। अरुनाभ ने फिल्म ओम शांति ओम में डायरेक्टार फराह खान के साथ काम किया। इसके बाद उन्हें रेड चिलीज एंटरटेनमेंट में अपना पहला काम मिला। अरुनाभ के काम से प्रभावित होकर आमिर खान ने उन्हें फिल्म डेल्ही बैली में काम करने का मौका दिया।
हर चैनल ने किया रिजेक्ट
इसके बाद अरुनाभ ने अपने शो इंजीनियर की डायरीको ऑन एयर करने के लिए एमटीवी समेत कई एंटरटेनमेंट चैनल्स से संपर्क किया लेकिन सबने रिजेक्ट कर दिया। अरुनाभ ने इस रिजेक्शन को हथियार बनाया और अपना यूट्यूब चैनल TheViralFeverVideos शुरू कर दिया। अरुनाभ ने एक इंटरव्यू  में कहा कि मेरे मन में एंटरटेनमेंट चैनल्स को आईना दिखाने की एक जिद आ गई थी। अरुनाभ के पहले वीडियो को 18 हजार व्यूज मिले। वहीं दूसरे वीडियो को 8 दिन में 10 लाख व्यूज मिल गए।      
50 करोड़ के करीब नेटवर्थ

अरुनाभ की नेटवर्थ अभी 50 करोड़ के करीब है। उनके पास मर्सिडिज वेंच और ऑडी जैसी कारों का कलेक्श्न है। अरुनाभ की सफलता को देखकर फॉर्च्यून मैगजीन ने 2015 और 2016 में 40 अंडर 40 कारोबारियों की लिस्ट में शामिल किया था। फोर्ब्स इंडिया के एक ब्लॉग में लिखा गया कि भारत में ऑन लाइन मार्केट को एंटरटेनमेंट के लिए सबसे सही इस्तेमाल अरुनाभ ने किया।   

Sunday 11 June 2017

मुझे बहुत बुरा लगा मेरे बेबी ,एबी

भारत ने दक्षिण अफ्रीका को हराकर चैंपियंस ट्रॉफी के सेमीफाइनल का​ टिकट कटा लिया है। मुझे अफ्रीका से भारत के जीतने की जितनी खुशी है उतनी ही एबी डीविलियर्स के हारने का गम है। एबी डीविलियर्स उन फेवरेट क्रिकेटर्स में से हैं जिनकी वजह से वर्तमान क्रिकेट में आज भी मेरी दिलचस्पी बरकरार है।   दरअसल, जब से सौरव गांगुली ने क्रिकेट से संन्यास लिया है तब से मेरी इस खेल में दिलचस्पी कम होनी शुरू हो गई है। वर्ना एक दौर ऐसा भी था जब गांगुली की अगुवाई में 2003 विश्वकप के फाइनल में भारतीय टीम पहुंची तो हर मैच के हर शॉट तक दिमाग में फेवीकॉल की तरह चिपक गया था। सहवाग का वो पाकिस्तान दौरे पर मुल्तान का सुल्तान बन जाना या बालाजी का बैट टूट जाना या फिर इंग्लैंड में गांगुली का टी शर्ट उतारना, न जाने ऐसे कई पल हैं जिसको रेडियो पर सुन कर ही मैं एक रेखाचित्र तैयार कर लेता था।

दौर बदला, हर टीम के कप्तान बदल गए, आॅस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को भी हराना आसान हो गया। भारतीय टीम में अनुभवी प्लेयर बाहर होने लगे, नए चेहरे आने लगे। लेकिन कुछ नहीं बदला तो वो दक्षिण अफ्रीका का टैग। वो टैग, जिसे 'चोकर' कहते हैं। हर बड़े टूर्नामेंट से पहले अफ्रीका के हथियार डाल देने की आदत ने लोगों के दिमाग में 'चोकर' छवि को और गाढी ही की है। लेकिन हां, उसके बावजूद न जाने क्यों दक्षिण अफ्रीका के एक प्लेयर के लिए मेरी हमदर्दी हमेशा बरकरार ही रही। वो प्लेयर कोई और नहीं एबी डीविलियर्स हैं। तूफानी शुरुआत से लेकर शानदार विकेटकीपिंग तक न जाने कितने टैलेंट छुपे हैं इस शख्स में। अब्राहम बेंजामिन डीविलियर्स उर्फ अब्बास को अगर क्रिकेट की दुनिया का सुपरमैन भी कहा जाए तो कम ही होगा।
       अच्छा एक सवाल पूछता हूं, आपके दिमाग में अभी कितने खेल के नाम चल रहे हैं? हॉकी, फुटबॉल, रग्बी, स्विमिंग, गोल्फ, बैडमिंटन, एथलेटिक्स... अगर मैं कहूं कि सुपरमैन डीविलियर्स हर खेल के चैंपियन रह चुके हैं तो यकीन करेंगे। अगर यकीन नहीं तो गूगल कर लीजिए ये कोई फर्जी बात नहीं बल्कि सच्चाई है।   यह शख्स हर खेल में चैंपियन की तरह खेला और जब क्रिकेट की बात आई तो यहां भी दुनिया के कई रिकॉर्ड बनाए। डीविलियर्स मैदान में अनुशानसन से लेकर टीम भावना तक की सीख देते रहे हैं।  लेकिन वो बतौर कप्तान सफल नहीं हो सके। उनकी अगुवाई में भी अफ्रीका चोकर ही बनी रही। कई बार अकेले उन्होंने टीम को जीत दिलाई लेकिन हर टूर्नामेंट में फेल हो जाने की टीम की फितरत हमेशा बरकरार ही रही। उन हार के गम को डीविलियर्स अकसर आंसू के जरिए बाहर निकालते रहे हैं। हर बार मुझे उस मासूम चेहरे को देखकर दर्द होता है। विश्वकप 2015 से जब अफ्रीका की टीम बाहर हो रही थी तब भी मुझे दर्द हुआ था। वो दर्द डीविलियर्स के आंसू देखकर और गहरा हो गया था। कमोबेश यही स्थिति आज एक बार फिर चैंपियंस ट्रॉफी में बन गई।  बहरहाल, मेरे एबी डीविलियर्स की महानता इन हारों से कम नहीं होने वाली है।

Friday 2 June 2017

हिंदी से प्रेम का मीडियम

​वैसे तो मैं जो भी फिल्म देखता हूं उसकी दो से चार दिनों में यादें धूमिल हो जाती हैं और उसे दोबारा देखने की इच्छा भी नहीं होती है। लेकिन पिछले दिनों रिलीज हुई इरफान खान और सबा कमर की फिल्म हिंदी मीडियम देखने के बाद मैं इसे दोबारा देखने को मजबूर हुआ। यह फिल्म हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाले उत्तर भारत के उन तमाम युवाओं को छूती नजर आ रही है जो हर दिन हर कदम पर ​अंग्रेजी से अपनी ही लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके अलावा प्राइवेट स्कूलों में सुप्रीम कोर्ट के शिक्षा का अधिकार पर दिए हुए फैसले का कैसे मजाक उड़ रहा है और किस प्रकार अमीरों में अपने बच्चे को आगे ले जाने की रेस है, इसको बेहद ही कॉमिक अंदाज में पेश किया गया है।
ये फिल्म इसलिए भी खास बन जाती है क्योंकि इसकी लीड एक्ट्रेस पाकिस्तान से हैं। दरअसल, जिस दौर में पाकिस्तान के खिलाफ हमारे देश में नफरत चरम पर है तभी वहां की एक एक्ट्रेस का एक्टिंग के जरिए छाप छोड जाना बेहद खास है।  'हिन्दी मीडियम' ने हमारे देश पर चढ़े अंग्रेज़ी के दीवानापन पर कॉमेडी के जरिए कटाक्ष किया है। फिल्म में ये दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे अंग्रेज़ी स्टेटस सिंबल बन चुका है और इस सिंबल को हासिल करने के लिए लोग किस हद तक जाने को तैयार हैं। यह सच भी है। दुनिया के तमाम ज्ञान होने के बावजूद अंग्रेजी ज्ञान न होने से लोग हीन भावना से ग्रस्त हैं।  इरफान और सबा कमर ने अपने लाजवाब अभिनय से उस कशमकश को बेहद खूबसूरती के साथ पर्दे पर उतारा है।


यह फिल्म एक तीखा जवाब है, उस सिस्टम और लोगों के लिए जो हिन्दी को हीनभावना के चश्मे से देखते हैं। यह फिल्म एक आईना है 'भारत' और 'इंडिया' के बीच के फासले को दिखाने का है। फिल्म में अंग्रेजी और हिंदी के फासले को मिटाने में जुटे इरफान खान का संघर्ष देखने लायक है। तमाम ख्वाहिशों के बावजूद सबा कमर का अपने पति के लिए प्यार भी कम दिलचस्प नहीं है।  दीपक डोबेरियाल के किरदार को देखने के बाद एक बार फिर यह एहसास होता है कि सच में गरीबों का दिल अमीरों से कहीं अमीर होता है।  फिल्म का अंत यह बताने की कोशिश करता है कि उन गरीब बस्तियों में दिखावा नहीं सहजता और ईमानदारी है। वहां लोगों की भावनाओं को कूचला नहीं जाता, अब भी इंसानियात जिंदा है। कमाई की रेस में ये फिल्म कहां टिकती है इसका तो पता नहीं लेकिन हां, इतना जरूर कहूंगा कि हिंदी से प्रेम करने वालों के दिल में जरूर घर बना लेगी।