Thursday 28 June 2018

मायावती की राह पर तेजप्रताप !

​वैसे तो सियासत में आत्ममुग्ध नेताओं की लंबी फेहरिस्त है लेकिन इस मामले में मायावती ने जो मुकाम हासिल किया है वो संभवत: अब तक कोई नहीं कर सका है। यह आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा ही है कि उन्होंने जिंदा रहते हुए ही अपनी मूर्तियां तब बनवा लीं। तब उन्होंने सरकारी खजाने को अपनी मूर्तियों पर खूब लुटाया।

लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट की मानें तो यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में पार्क और माया के अलावा काशीराम की मूर्तियां पर कुल 5,919 करोड़ रुपए खर्च किए थे।
वहीं नोएडा स्थित दलित प्रेरणा स्थल पर बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी की पत्थर की 30 मूर्तियां जबकि कांसे की 22 प्रतिमाएं लगवाई गईं थी। इसमें 685 करोड़ का खर्च आया था। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन पार्कों और मूर्तियों के रखरखाव के लिए 5,634 कर्मचारी बहाल किए गए थे।

ये तो हुई पुरानी बात, अब नए दौर में नई आत्ममुग्धता लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप में दिख रही है। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा कि उन्होंने फिल्मों में एंट्री ली है इस वजह से आत्ममुग्ध हैं। उनकी आत्ममुग्धता का लंबा रिकॉर्ड रहा है। तेजप्रताप यादव ने कुछ महीनों पहले ही एक वीडियो सॉन्ग लांच किया था। उस वीडियो में 'तेजप्रताप पुकार रहा है' नाम से गाना गया है। इस वीडियो में उन्होंने खुद को गरीबों का मसीहा से लेकर विकास पुरुष तक बताया है।    

इससे पहले सार्वजनिक मंच पर कई ऐसे मौके आए हैं जब उन्होंने बांसुरी से लेकर शंखनाद तक किया है। यानी उन्होंने वो सभी हथकंडे अपनाए हैं जिसके जरिए मीडिया में सुर्खियां ​मिलती रहे और आत्ममुग्धता को भी तृप्ति मिले। बहरहाल, तेजप्रताप का यह रुप सामान्य नेताओं से बिल्कुल अलग है। यह आत्ममुग्धता न तो कभी उनके पिता लालू यादव में रही और न ही तेजस्वी यादव में है। संभवत : यही वजह है कि तेजप्रताप बिहार की राजनीति में ज्यादा मायने नहीं रखते हैं।  

No comments:

Post a Comment

thanks