Sunday 4 September 2016

मदर टेरेसाः एक शिक्षिका, जिंदगी सिखाने वाली


कोलकाता में ग़रीबों के लिए काम करने वाली रोमन कैथोलिक नन मदर टेरेसा को संत घोषित किया गया।  वेटिकन सिटी में उन्हें यह उपाधि मिली।
शिक्षा को पेशे के दायरे से हटकर देखा जाए तो सीखने की शुरुआत घर से होती है। मदर टेरेसा ने कोलकाता को अपना घर बनाया और 68 साल तक गरीबों और लाचार वर्ग की सेवा कर दुनिया को मानवता की शिक्षा दी। उनकी स्थापित की हुई संस्था, मिशनरीज ऑफ चैरिटी दुनिया के 123 देशों में 4500 सिस्टर के जरिए लोगों की सेवा निरंतर जारी रखे हुए है। 1910 में मैसेडोनिया के कोसोवर में जन्मीं टेरेसा 1950 में कोलकाता का रुख किया। यहां आने से पहले वह ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया और युगोस्लाविया की नागरिक रह चुकी थीं। भारत उनका पांचवां और सबसे पसंदीदा घर बना। उन्होंने नन के पारंपरिक परिधानों से इतर नीले बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनकर खुद को लोगों से जोड़ा। वह भारतीय जनमानस की नब्ज को जानती थीं। समझती थीं कि कोलकाता भी उन्हें तभी अपनाएगा, जब वह इसे अपनाएंगी। टेरेसा की संस्था ने यहां कई आश्रम, गरीबों के लिए रसोई, स्कूल, कुष्ठ रोगियों के लिए बस्ती, अनाथों के लिए घर आदि बनवाए। उनके आलोचक भी कम नहीं थे। गंदी बस्तियों में सेवा करने के कारण पश्चिमी जनमानस ने उन्हें ‘गटर की संत’ तक कहा था, लेकिन वह कहतीं थीं कि जख्म भरने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठ से कहीं पवित्र होते हैं। दुनिया का सर्वोच्च सम्मान नोबेल शांति पुरस्कार, भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और दुनिया के ढेरों अवॉर्ड पाकर भी 1997 में उन्होंने कोलकाता में ही आखिरी सांस ली। 1979 में जब टेरेसा नोबेल का शांति पुरस्कार लेकर देश लौटी थीं तो तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने कहा था आजतक आप भारत की मां थीं और अब पूरी दुनिया की मां बन गई हैं, जो आपसे जिंदगी जीने की शिक्षा लेगी।  मदर टेरेसा का व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि पोप जॉन पॉल द्वितीय भी उनके मुरीद थे। वैसे वह उनके अच्छे दोस्त भी थे। टेरेसा की मौत के बाद उन्हें संत घोषित करने की प्रक्रिया को पोप ने तेजी से पूरा करवाया। वेटिकन की नजर में संत की उपाधि उसे ही दी जाती है, जिसके दो चमत्कारों की पुष्टि हो जाए। टेरेसा की मौत के पांच साल बाद उनका पहला चमत्कार स्वीकार किया गया था। एक बंगाली आदिवासी महिला मोनिका बेसरा के पेट का अल्सर तब ठीक होने का दावा किया गया, जब उसके पेट पर टेरेसा की तस्वीर रखी गई। इसके बाद ब्राजील के एक व्यक्ति ने अपनी दिमागी बीमारी के टेरेसा के चमत्कार से ठीक होने की बात स्वीकार की। आखिरकार पोप फ्रांसिस ने टेरेसा को संत की उपाधि देने का निर्णय लिया।   

विज्ञान पर आस्था की जीत
वेटिकन के अनुसार साल 2002 में मदर टेरेसा से प्रार्थना करने के बाद एक भारतीय महिला मोनिका बेसरा के पेट का ट्यूमर चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गया था। इसी तरह वेटिकन ने टेरेसा से जुड़े एक और चमत्कार की पुष्टि की थी। 2008 में ब्राज़ील की एक महिला का ब्रेन ट्यूमर ठीक हो गया। इसे पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा के दूसरे चमत्कार के रूप में मान्यता दे दी. इसके बाद अगले साल यानी साल 2009 में उन्हें संत बनाए जाने का रास्ता साफ़ हो गया था।

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