Wednesday 24 June 2015

जारी है क्रिकेट पिच पर खूनी खेल


खेलों में बरसी संपन्नता ने क्रिकेट को व्यावसायिकता की तरफ मोड़ दिया, उससे प्रतिस्पर्धा बढ़ी। आक्रामकता को नया तेवर मिला। आक्रामकता क्रिकेट की अनिवार्य पहचान बनी हुई है और पिच पर खिलाड़ियों के खून रिसने का सिलसिला जारी है।

कहा जाता है कि खेल, युद्ध का अहिंसक और मित्रतापूर्ण रूपांतरण है। लेकिन कभी - कभी खेल में ऐसी दुर्घटना हो जाती है, जो याद दिलाती हैं कि तमाम एहतियात के बावजूद खेल उतने अहिंसक और सुरक्षित नहीं हैं, जितना हम मानते हैं। बंगाल के युवा प्रतिभाशाली क्रिकेटर अंकित केशरी की एक मैच के दौरान लगी चोट से मौत भी ऐसी ही है। अंकित बंगाल की अंडर-19 क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके थे और भारत की अंडर-19 टीम के संभावित खिलाड़ियों में भी उनका नाम था।  अंकित ‘मौत के मैच’ में खेलने वाले 11 खिलाड़ियों में से नहीं थे, वह अतिरिक्त खिलाड़ी थे। वह थोड़ी ही देर पहले किसी खिलाड़ी की जगह क्षेत्ररक्षण करने मैदान में आए थे। एक कैच उनकी तरफ  उछला, जिसे पकड़ने एक ओर से वह दौड़े,  दूसरी ओर से गेंदबाज खुद कैच पकड़ने दौड़ पड़ा, इसमें कुछ नया नहीं था। 1999 में श्रीलंका के खिलाफ एक मैच में ऐसा ही हुआ। आस्ट्रेलिया के स्टीव वॉ शार्ट फाइन लेग पर फील्डिंग कर रहे थे, जेसन गिलेस्पी डीप स्क्वायर लेग पर थे। एक कैच को लपकने की कोशिश में दोनों टकरा गए। स्टीव की नाक और गिलेस्पी का पैर चोटिल हो गया। गिलेस्पी को पंद्रह महीने तक क्रिकेट से दूर रहना पड़ा जबकि स्टीव वॉ को नाक की सर्जरी करानी पड़ी। इस तरह की घटनाएं क्रिकेट में आम होती हैं कि एक ही कैच पकड़ने दो खिलाड़ी दौड़ पड़े। कभी कैच पकड़ा जाता है, तो कभी दोनों के बीच गलतफहमी की वजह से छूट जाता है, कभी दोनों खिलाड़ी टकरा भी जाते हैं और थोड़ी - बहुत चोट भी लग जाती है। लेकिन दो खिलाड़ियों के टकराने से किसी एक खिलाड़ी ( अंकित केशरी ) के मौत की घटना संभवतः पहली बार है।  जाहिर है कि उन्हें नियम बना कर रोका नहीं जा सकता लेकिन जरूरी है क्रिकेट में जरूरत से ज्यादा आक्रमकता को रोकना। पिछले साल कंगारू टीम के युवा खिलाड़ी फिल ह्यूज की मौत पर ऑस्ट्रेलिया में काफी आंसू बहे लेकिन वहां की क्रिकेट संस्कृति में तो विपक्षी टीम को मानसिक व शारीरिक रूप से ध्वस्त करने की चाहत कूट-कूट कर भरी हुई है। इसके लिए सिर्फ गेंद ही हथियार नहीं होती, गाली-गलौज और सामने वाले खिलाड़ी को उकसाने की हर तरह की हरकत वहां सालों से हो रही हैं। बाकी देशों में भी आक्रामकता को खेल का अनिवार्य हिस्सा मान लिया गया है। मसलन, वेस्टइंडीज के मैल्कम मार्शल को बल्लेबाज जितना सहमा हुआ दिखता था, उतना ही उन्हें आनंद आता था। आस्ट्रेलिया के जेफ थामसन को पिच पर गिरी बल्लेबाज की खून की बूंदें राहत देती थीं। इसमें कोई दो मत नहीं कि पिछले कुछ सालों में क्रिकेट श्रेष्ठता साबित करने का जरिया बन गया है। प्रतिष्ठा तो इससे जुड़ी ही है, आर्थिक फायदा भी महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि अरबों रुपये का राजस्व उगलने वाला यह खेल  थोड़ा विवादित और आक्रामक होगा ही ताकि उस मैच की ओर दर्शकों का ध्यान आकर्षित हो। जानकारों का मानना है कि आज के दौर में मैदान पर खिलाड़ियों की आक्रामकता स्क्रिप्टेड है। कई पूर्व खिलाड़ियों का कहना है कि मैदान पर आक्रामक रवैया अपनाने की मांग मैनजमेंट और संस्‍थाएं करती हैं ताकि लोगों का ध्यान आक्रामक खिलाड़ी और मुकाबलों की ओर आकर्षित हो। शायद इसी का नतीजा है कि विराट कोहली वर्तमान दौर के आक्रामक खिलाड़ियों में शुमार हो चुके हैं और दर्शकों की नजर में देश का आक्रामक प्रतिनिध बने हुए हैं। आज के दौर में जहां संस्‍थाएं किसी भी मैच को टीवी चैनल का रियालिटी शो बनाने की कोशिश में लगी हुई हैं
जिस वजह से मैदान पर तरह - तरह से  खिलाड़ियों को उकसाया जाता है। बल्लेबाजी कर रहे खिलाड़ी को गेंदबाज उकसाता है तो गेंदबाजी कर रहे खिलाड़ी को बल्लेबाज।  जिसका नतीजा यह होता है कि 
दोनों एक दूसरे को करारा जवाब देने के चक्कर में कुछ खतरनाक कदम उठा लेते हैं। मसलन बल्लेबाज , कुछ खतरनाक शॉट मारने की कोशिश करता है तो गेंदबाज कुछ खतरनाक बाउंसर। बाउंसर  तेज गेंदबाज का सबसे अचूक हथियार माना जाता है। मकसद खिलाड़ी को पीछे की ओर धकेलना होता है। पिच के बीच टप्पा खा कर गेंद उछल कर बल्लेबाज की छाती के ऊपर आती है और घबरा कर बल्लेबाज या तो सुरक्षात्मक अंदाज अपनाता है या गेंद के रास्ते से हटने की कोशिश करता है अथवा लेग साइड पर गेंद को मार कर रन लेने का जोखिम उठाता है। इस पूरी कोशिश में जरा सा संतुलन गड़बड़ाते ही चोट लगने का खतरा बना रहता है और अगर यह चोट सिर के किसी हिस्से में लगती है तो फिल ह्यूज की तरह के हादसों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।  ऐसे में रास्ता यही है कि अंपायर ज्यादा सतर्क रहें और अगर उन्हें लगे कि गेंदबाज जानबूझ कर बल्लेबाज को निशाना बनाने की कोशिश कर रहा है तो उसे चेतावनी दे।  अंपायरों को अतिरिक्त अधिकार देना जरूरी है क्योंकि वह ही तय कर सकते हैं कि गेंदबाज की उग्रता में क्या भावना छिपी है? साथ ही विकेट कीपर, फील्डर और बल्लेबाज के लिए आधिक सुरक्षित उपकरण विकसित किए जाने की जरूरत है। खिलाड़ियों को अपनी तकनीक भी सुधारनी होगी।  क्रिकेट अब पहले जैसा जेंटलमैन गेम तो बनने वाला नहीं है। खिलाड़ियों के लिए वह जितना सुरक्षित हो जाए, उतना ही अच्छा है।


जब बाउंसर ने गावस्कर को डराया
1975-76 में किग्संटन में माइकल होल्डिंग की अगुवाई में वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों ने बाउंसरों की बौछार कर भारतीय खिलाड़ी अंशुमन गायकवाड़ का कान तोड़ दिया। विश्वनाथ की उंगली टूट गई और ब्रजेश पटेल भी अस्पताल पहुंच गए। सुनील गावस्कर ने शरीर को जानबूझ कर निशाना साध कर गेंद फेंकने की जब चीनी मूल के अंपायर सैंग ह्यू से शिकायत की तो उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। गावस्कर ने गुस्से में बैट पटक दिया और कहा, `मैं यहां मरना नहीं चाहता। मुझे अपने नवजात बेटे से मिलना है।’ स्थिति यह थी कि  हर बाउंसर के साथ दर्शक चिल्लाते थे, किल हिम! (इन्हें मार डालो) हिट हिम, (इनके सिर पर मारो)।  जब भी बल्लेबाज को गेंद लगती प्रशंसक बीयर केन के साथ उछलते और खुशी मनाते।


एक पक्ष लापरवाही का
पिछले साल फिल ह्यूज की मौत के बाद इंग्लैंड के दिग्गज खिलाड़ी ज्यॉफ्री बॉयकाट ने कह‌ा था, कुछ भी कर लिया जाए, मैदान पर होने वाले हादसों को नहीं रोका जा सकता। उनका मानना है, किक्रेट के नए-नए प्रारूप सामने आने से खेल का हुलिया ही बदल गया है। तकनीक की उपेक्षा होने लगी है। हेलमेट पहनने के बाद खिलाड़ी मान लेते हैं कि उन्हें चोट नहीं लग सकती। वे लापरवाह हो जाते है। ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की होड़ में वे ज्यादा खेलने में व्यस्त रहते है और अपनी तकनीक की खामियों में सुधार नहीं कर पाते। खिलाड़ी पुराने सैनिकों की तरह बख्तर बंद पहन कर खेलें तो बात अलग है नहीं तो हेलमेट या अन्य उपकरणों में कितना भी सुधार क्यों न कर लिया जाए, हादसे नहीं थमने वाले।


जब चोट से प्रभावित हुआ खेल
28 साल के भारतीय खिलाड़ी नॉरी कट्रेक्टर 1962 में आधा दर्जन ऑपरेशन के बाद बच तो गए,  लेकिन उन्हें क्रिकेट से नाता तोड़ना पड़ा। टेस्ट क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर दक्षिण अफ्रीका के मार्क बाउचर की 2013 में विकेट की गिल्ली उछलकर आंख में लग जाने से आगे क्रिकेट खेल सकने लायक रोशनी ही नहीं बची। पूर्व भारतीय विकेट कीपर सैयद सबा करीम भी ऐसी ही दुर्घटना का शिकार होने के बाद अपनी दाईं आंख गवां बैठे थे। वह अनिल कुंबले की गेंद को पकड़ने में चूक गए और गेंद सीधे उनकी आंख में लगी। क्रिकेट के सबसे बड़े बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर भी अपने पहले टेस्ट मैच में वकार यूनिस की गेंद का शिकार हुए। नाक में गेंद लगने से उनकी नाक लहुलुहान हो गई थी। लेकिन जिंदादिल सचिन ने हार नहीं मानी और बैटिंग जारी रखी। इस घटना के बाद सचिन ने खुले हेलमेट की जगह ग्रिल वाले हेलमेट लगाना शुरू कर दिया। सचिन ने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि उस चोट के बाद मेरा मन क्रिकेट छोड़ने का हो गया था। सचिन की ही तरह वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज ब्रायन लारा भी चोट का शिकार हो चुके हैं। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी - 2004 के सेमीफाइनल में लारा पाकिस्तानी गेंदबाज शोएब अख्तर की बाउंसर पर चकमा खा गए और गेंद सीधी उनके सिर पर लगी। ब्रायन लारा खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि यदि उस दिन हेलमेट नहीं होता तो शायद उनके सर की धज्जियां ही उड़ जातीं। लारा ने यह भी कहा था कि वह चोट उन्हें आज भी परेशान करती है।  दक्षिण अफ्रीका के पूर्व ओपनर गैरी क्रिस्टन भी शोएब अख्तर की खतरनाक बाउंसर पर अपनी नाक तुड़वा चुके हैं। पूर्व भारतीय कप्तान अनिल कुंबले सन 2002 में वेस्टइंडीज के खिलाफ  मार्वन ढिल्लन की गेंद पर चोट खाकर जबड़ा तुड़वा चुके हैं। कुंबले उस चोट के बाद लंबे समय तक क्रिकेट से बाहर रहे और बाद में वह बाउंसर खेलने से बचते भी रहे।


वो साहसी खिलाड़ी
लेकिन कई ऐसे बल्लेबाज भी हुए जो तेज गेंदों से घायल होने के बाद भी खेलने वापस आए। इनमें से एक खिलाड़ी का किस्सा यहां बताना जरूरी है। उसका नाम ज्यादातर लोग नहीं जानते। वह थे सुल्तान जरावई जो करोड़पति थे और शौकिया क्रिकेट खेलते थे। वह यूएई टीम के कप्तान भी थे। उनका मुकाबला 1996 में रावलपिंडी में दक्षिण अफ्रीका के खतरनाक गेंदबाज एलेन डोनाल्ड से हुआ। उन्होंने हेलमेट की बजाय एक हैट पहना था। डोनाल्ड की पहली ही गेंद उठती हुई बाउंसर थी। गेंद जरावई के सिर में लगी और वह चकरा गए, पांच मिनट बेहोश रहे लेकिन कुछ ही सेकेंड बाद उन्होंने अपना हैट उठाया और फिर बल्लेबाजी करने चले आए। छह गेंद बाद वह आउट हो गए लेकिन अपनी बहादुरी की छाप छोड़ गए। इंग्लैंड के महान बल्लेबाज डेनिस क्रॉम्पटन को 1948 में रे लिंडवॉल ने अपने बाउंसर से बुरी तरह जख्मी कर दिया। उनके सिर पर दो टांके लगे लेकिन वह घबराए नहीं और अस्पताल से लौटकर बैटिंग करने आए, उन्होंने उस मैच में शानदार 145 नाबाद रन बनाए।



सिलसिला मौत का ....
-  इंग्लैंड के जैस्पर विनाल का निधन 28 अगस्त 1624 को एक क्लब मैच के दौरान सिर में बैट लगने से हो गया था।
-  नॉटिंघम में 29 जून, 1870 को इंग्लैंड के जॉर्ज समर्स (उम्र ः25 ) के सिर पर गेंद से गंभीर चोट लगी, कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई।
- इंग्लैंड के एंडी डुकाट (उम्र ः 56 ) का 23 जुलाई, 1942 को लंदन में एक क्रिकेट मैच के दौरान शॉट गेंद सीने पर लगी फिर दिल का दौरा पड़ गया।
- कराची में 17 जनवरी, 1959 को एक मैच के दौरान पाकिस्तान के अब्दुल अजीज ( उम्रः 18 )की छाती में गेंद से जानलेवा चोट लगी।
- इंग्लैंड के विल्फ स्लैक का निधन गांबिया के बंजुल में एक मैच के दौरान बल्लेबाजी करते हुए हुआ, स्लैक 34 साल के थे।
- इंग्लैंड के ही इयान फोली (उम्र ः 30 ) भी एक मैच के दौरान गंभीर रूप से चोटिल हुए जिसके कुछ दिनों बाद 30 अगस्त 1993 को उनका निधन हो गया।
-  1998 में भारतीय क्रिकेटर रमन लांबा (उम्र: 38 साल) की भी मौत सिर में बॉल लगने के कारण हुई थी। वह बांग्लादेश के ढाका में क्लब क्रिकेट खेल रहे थे। शॉर्ट लेग पर फील्डिंग के दौरान रमन के सिर पर एक तेज शॉट लगा। चोटिल लांबा को ढाका के पोस्ट ग्रेजुएट अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।
- पाकिस्तान के वसीम रजा ( उम्र : 54 ) का 23 अगस्त, 2006 को इंग्लैंड के मर्लों में मैच के दौरान दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
- इंग्लैंड के अंपायर जेनकिंस 2009 में एक लीग मैच में अंपायरिंग कर रहे थे।  क्षेत्ररक्षक द्वारा फेंकी गई गेंद दुर्घटनावश 72 वर्षीय जेनकिंस के सिर पर जा लगी और मौत हो गई।
-  इंग्लैंड के काउंटी क्लब खिलाड़ी 33 वर्षीय ब्यूमोंट 2012 में खेल के मैदान पर दिल का दौरा पड़ने से गिर पड़े और अस्पताल ले जाए जाने पर मृत घोषित कर दिए गए।
- दक्षिण अफ्रीका के विकेटकीपर बल्लेबाज डैरिन रैंडाल ( उम्र :32 ) को 27 अक्टूबर, 2013 को एलिस में एक मैच के दौरान सिर में गंभीर चोट लगी और मौत हो गई।
-  2013 में घरेलू क्रिकेट खेलने के दौरान एक गेंद पाकिस्तान के जुल्फिकर भट्टी (उम्र: 22 साल) के सीने पर लगी थी, उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वो बच नहीं सके।
- 30 नवंबर, 2014 को इजरायल के ऐशडोड शहर में एक मैच के दौरान अंपायरिंग कर रहे 55 साल के ऑस्कर हिलेल की गेंद लगने से मौत हो गई।
- बल्लेबाजी के दौरान सिर में गंभीर चोट लगने के बाद आस्ट्रेलिया के फिल ह्यूज का निधन 27 नवंबर 2014  सिडनी में हुआ।
- भारत के अंकित केसरी का निधन 20 अप्रैल, 2015 को कोलकाता में हुआ। वह 17 अप्रैल को एक मैच में क्षेत्ररक्षण करने के दौरान अपने साथी खिलाड़ी से टकरा गए थे और यह चोट जानलेवा साबित हुई।


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क्या कहते हैं आंकड़े
एक रिसर्च के मुताबिक हर 25वें सेकंड में या एक साल में 13, 50000 बार एक युवा एथलीट सिर की चोट लगने के कारण इमरजेंसी वॉर्ड में भर्ती होता है। अमेरिकी संस्था ‘सेफ  किड्स वर्ल्ड वाइड’ द्वारा किए शोध के मुताबिक खिलाड़ी सबसे ज्यादा सिर की चोट के कारण अस्पताल में भर्ती किए जाते हैं। यह शोध दुनिया भर में खेले जाने वाले 14 सबसे लोकप्रिय खेलों में दर्ज हुए प्रकरणों के आधार पर किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक अस्पतालों के इमरजेंसी रूम में भर्ती होने वाले 12 फीसदी केस सिर पर आघात के होते हैं। इसका सबसे ज्यादा शिकार होते हैं 12 से 15 उम्र के एथलीट। अगर भारत में क्रिकेट के दौरान चोटिल होने वाले खिलाड़ियों की बात की जाए तो हर दिन करीब 233 बच्चे गंभीर रूप से घायल होते हैं और अस्पताल में भर्ती किए जाते हैं, जिनमें से नौ खिलाडी़ दम तोड़ देते हैं। 


हेलमेट ः तब और अब में फर्क
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के युवा बल्लेबाज की मौत के बाद खिलाड़ियों के हेलमेट पर सवाल खड़े होने लगे। ह्यूज ने जो हेलमेट पहना हुआ था उससे पीछे गर्दन वाला हिस्सा कवर नहीं हो पा रहा था और गेंद जाकर सीधे वहीं लगी। उनका हेलमेट 2013 वर्जन वाला था, जबकि हाल ही में 2014 वर्जन वाले हेलमेट से कान के पास वाला हिस्सा भी ग्रिल के जरिए कवर होता है। भारत के महानतम बल्लेबाज सुनील गावस्कर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने करियर में कभी भी हेलमेट नहीं पहना। हालांकि उन्होंने 1986 में इंग्लैंड के खिलाफ  एक वनडे मैच में प्रायोगिक तौर पर सिर को सुरक्षा देने वाला कैप (हेडगियर) पहना लेकिन इसे हेलमेट नहीं कहा जा सकता। 1977 में डेनिस लिली और टोनी ग्रेग ने प्रायोगिक तौर पर मोटरसाइकिल के हेलमेट की तरह हेलमेट पहनना शुरू किया। क्रिकेट में सबसे पहले हेलमेट पहनने की शुरुआत 17 मार्च, 1978 को ऑस्ट्रेलिया के ग्राहम नील यालेप ने वेस्टइंडीज के खिलाफ  एक मैच के दौरान की थी। हालांकि इस हेलमेट के प्रयोग पर अंदर काफी गरमी होती थी क्योंकि हवा के अंदर जाने का कोई प्रबंध नहीं था। धीरे-धीरे हेलमेट में सुधार आता गया और हेलमेट को हवादार भी बनाया जाने लगा। अगस्त, 1994 को कोलंबो में खेले गए मैच में श्रीलंका के बल्लेबाज असांका गुरुसिंघा ने इस हवादार हेलमेट को पहना। धीरे-धीरे क्षेत्ररक्षक भी हेलमेट पहनने लगे। 90 के दशक के बाद जैसे-जैसे क्रिकेट मैच ज्यादा होने लगे वैसे-वैसे ही टिकाऊ और उपयोगी हेलमेट की मांग बढ़ने लगी। हेलमेट के बनावट में और सुधार आया, उसे हल्का होने के साथ-साथ और लचीला भी बनाया जाने लगा।

हेलमेट खरीदते समय खिलाड़ी रखे इन बातों का ध्यान
ये बातें अनिवार्य
-  फेसगार्ड और सिर के कवर के बीच पर्याप्त जगह।
  -  कान की सुरक्षा।
- कान के पीछे और गर्दन के ऊपरी हिस्से के लिए एक्स्ट्रा ग्रिल।
-  सिर को कवर करने वाली टोपी मजबूत हो।

तो खिलाड़ी ही हैं जान के दुश्मन
ऐसा नहीं है कि क्रिकेट के लिए उच्च तकनीक हेलमेट नहीं बनाए गए हैं। इंग्लैंड की एल्बियॉन स्पोर्ट्स ने एक ऐसा हेलमेट बनाया जो सिर का अधिकतर भाग कवर करता था और इससे टकराने के बाद गेंद आसानी से दूसरी ओर उछल जाती थी लेकिन उसकी बिक्री ही नहीं हुई और कंपनी को अपने उन हेलमेट्स को बाजार से हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके पीछे क्रिकेटरों का नए प्रयोग के लिए तैयार नहीं होना माना गया। कई कंपनियां यह भी कहती हैं कि क्रिकेट के कई दिग्गज ही हेलमेट में नई तकनीक लाने में बाधा बने हुए हैं। ये आधुनिक तकनीक वाले हेलमेट को इस खेल के पारंपरिक सौंदर्य को बिगाड़ने वाला मानते हैं। वहीं कुछ कंपनियों का आरोप है कि क्रिकेट की संस्थाओं को भी इस तरह की हेलमेट्स से परेशानी है। कंपनियों का कहना है , हर देश की क्रिकेट संस्‍थाओं में दिग्गज खिलाड़ियों का ही वर्चस्व है और वह इसके एवज में मोटी रकम चाहते हैं। अगर हम उन्हें मोटी रकम खिलाए तो संभव है कि आधुनिक तकनीक के हेलमेट प्रयोग में आ जाए।  हालांकि हाल ही में आइसीसी ने हेलमेट में नए संशोधनों की सिफारिश की है। हेलमेट में मुंह के समक्ष जाली के बीच की दूरी ज्यादा होने के कई बार गेंद बल्लेबाज की नाक एवं माथे में लग सकती है। ऐसे में आइसीसी ने खेल उपकरण विशेषकर हेलमेट बनाने वाली कंपनियों से और सुरक्षित हेलमेट बनाने की अपील की है।

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