Saturday 28 January 2017

जेन्टल मैन से एक्सपेरिमेंटल मैन तक

अगर आपसे कोई सवाल पूछे - महेंद्र सिंह धोनी को किस लिए याद रखना चाहेंगेविकल्प हैं, 2011 विश्‍वकप में उस नेतृत्‍व के लिए जिसकी बदौलत 125 करोड़ की आबादी का सपना पूरा हुआ या उस प्रयोग के लिए जिसने पहले टी 20 विश्‍वकप के फाइनल में पाकिस्‍तान जैसी टीम के खिलाफ आखिरी ओवर औसत दर्जे के गेंदबाज जोगिंदर शर्मा से करवा डाला। या उस शख्सियत के लिए जिसने खुद को कभी टीम से उपर नहीं समझा। या फिर उस विवादों के लिए जिसके जरिए धोनी को फिक्सरसे लेकर स्‍वार्थीतक का तमगा मिल गया लेकिन वह मैदान से लेकर मैदान के बाहर तक हमेशा कुलही रहे। इन विकल्‍पों को सुनकर संभवत
आपका जवाब होगा : ऊपर दिए सभी।


जी हां, धोनी ने सिर्फ क्रिकेट खेला नहीं, जिया भी। 22 गज की पिच पर धोनी ने अपने खेल के जरिए दुनिया को वो सब कुछ दिखाया जिसके बारे में क्रिकेट के बड़े बड़े जानकार सोच नहीं सकते थे।  फिर चाहे वो 2011 वर्ल्ड कप फाइनल में खुद को युवराज से आगे बैटिंग करने का फैसला हो या फिर ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ बीच दौरे में ही संन्‍यास लेने का मामला हो। आमतौर पर कुर्सी छोड़ना आसान नहीं होता है, चाहें उसे कितनी ही फजीहत का सामना करना पड़ें।  बिरले ही होते हैं जो वक्त के पहले कुर्सी का मोह त्याग पाते हैं। ऐसे ही हैं धोनी जो अपने फैसलों से सभी को आश्चर्य चकित कर देते हैं। ऐसे फैसल कर धोनी एंज्‍वॉय भी करते हैं। श्रीलंका दौरे की बात
हैदौरे पर जाने से पहले धोनी मीडिया से मुखातिब हो रहे थे। तभी एक पत्रकार ने सवाल पूछ लिया, आप इतने अटपटे फैसले क्‍यों लेते हैं? इस पर माही ने मुस्‍कुराते हुए अपने ही अंदाज में जवाब दिया । उन्‍होंने कहा, इसलिए अटपटे प्रयोग करता हूं ताकि आप लोगों के पूर्वानुमान झूठे साबित हो सकें। यह काफी हद तक सच भी है। दरअसल, धोनी की कप्तानी में शायद वो कुछ भी नहीं था जो आमतौर पर क्रिकेट कप्‍तानों के टेक्स्ट बुक में होता है। अकसर टीम के कप्‍तान की छवि में गुस्‍सा , दबाव और एटीट्यूड देखने को मिलता हैं लेकिन बतौर कप्‍तान धोनी इसके बिल्‍कुल विपरीत थे। धोनी का गुस्‍सा और एटीट्यूड बिरले ही देखने को मिलता था, दबाव तो शायद ही किसी ने देखी हो। दबाव में तो धोनी और निखर जाते थे। ऐसे माहौल में लगता था जैसे उन्‍हें स्‍ट्रेटजी की पोटली हाथ लग गई हो। न जाने कितनी बार धोनी ने लोगों की रूकी हुई सांसों को आखिरी ओवर में जश्‍न में बदल दिया है, ये आंकड़े गिनने वालों को भी शायद याद न हो।

   धोनी की यही कला, उन्‍हें अन्य खिलाड़ियों से अलग बनाती है।  धोनी का खेल जिनता गहरा है कद भी उतना ही बड़ा है। किसी खिलाड़ी के लिए इससे बड़ी तारीफ क्या हो सकती है जो लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर ने की उन्होंने कहां यदि धोनी खिलाड़ी के रुप में संन्यास ले लेता तो ,मैं उसके घर के सामने धरने पर बैठ जाता मैं तब तक नहीं उठता जब तक वह खेलने के लिए सहमत नहीं होता। 

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