Thursday, 27 October 2016

इस लड़ाई में ऑस्ट्रेलिया कहां?


अगर कोई आपसे सवाल पूछे - लंबे समय तक क्रिकेट की बादशाहत किस टीम के पास रही है ? निश्चित ही आपका जवाब ऑस्ट्रेलिया होगा। और इस जवाब में दम भी है क्योंकि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट ने लगभग तीन दशक तक विश्व क्रिकेट पर एकछत्र वर्चस्व बनाए रखा। जीत की जो बयार ऑस्ट्रेलियाई टीम में चली उस टीम को एलन बॉर्डर और स्टीव वॉ से लेकर रिकी पोटिंग तक ने संभाला।  हालांकि समय - समय पर उन्हें हार भी मिली लेकिन इससे कंगारूओं की ख्याति पर असर नहीं पड़ा। वह अपने अग्रेसन और जुझारू क्रिकेट को हमेशा ही निखारते रहे। चार बार वनडे क्रिकेट की विश्व चैंपियन कोई देश बन जाए और टेस्ट क्रिकेट की रैंकिंग में करीब एक दशक तक नंबर वन रह जाए तो समझ लीजिए उस टीम में जो भी खिलाड़ी आ रहा है अपना बेस्ट देकर जा रहा है। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब ऑस्ट्रेलियाई टीम हर बार हार के नए रिकॉर्ड बनाती है। अभी हाल ही में दक्षिण अफ्रीका ने वनडे में 5-0 से हराकर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के अच्छे दिन की ताबूत में आखिरी कील दे मारी है। दरअसल, ऑस्ट्रेलियाई टीम अभी एक त्रासदी के दौर से गुजर रही है। टीम में कप्तान स्टीवन स्मिथ को छोड़ दें तो कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं नजर आ रहा है जो ऑस्ट्रेलिया को नई संजीवनी दे सके। कंगारू टीम की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि उसके अनुभवी पूर्व खिलाड़ी भी वर्तमान खिलाड़ियों को क्रिकेट की बारीकियां सीखाने की बजाए आपस में ही भिड़े हैं। मसलन, अभी कुछ दिनों पहले ही पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान माइकल क्लार्क ने एक टीवी इंटरव्यू में साथी खिलाड़ी और ऑलराउंडर शेन वॉटसन को टीम का 'ट्यूमर' बताया था तो अब वॉटसन के दोस्त और तेज गेंदबाज मिशेल जॉनसन ने क्लार्क को ही जहरीला बता दिया है। हालांकि वॉटसन ने इस पूरे मामले पर अभी कुछ ऐसा नहीं बोला है जिससे, सुर्खियां बन जाएं।  तर्क देने वाले यह कह सकते हैं कि जॉनसन की आत्मकथा आ रही है शायद इसलिए वह ऐसा बयान दे रहे हैं। लेकिन सच यह है कि 73 टेस्ट मैच खेल चुके जॉनसन और पूर्व कप्तान माइकल क्लार्क के रिश्तों मेंं 2013 के बाद से ही खटास आ गई थी। बहरहाल, जॉनसन ने दावा किया है कि
माइकल क्लार्क की अगुवाई में कंगारू टीम जहरीली हो गई थी। जॉनसन ने साथ ही कहा कि टीम के कई खिलाड़ी क्लार्क के नेतृत्व में नहीं खेलना चाहते थे। 2013 में भारत दौरे से पहले कोच मिकी आर्थर द्वारा दिए गए टास्क को नहीं कर पाने की वजह से प्रतिबंधित होने वाले चार खिलाड़ियों में से एक जॉनसन ने बताया कि 2011 में रिकी पोंटिंग के कप्तान छोड़ने के बाद से ऑस्ट्रेलियाई टीम खंडित हो गई थी।  जॉनसन ने कहा,  यह निश्चित ही शानदार बदलाव था लेकिन यह एक टीम नहीं थी। टीम गुटों में बंट गई थी और यह बेहद जहरीला था। यह धीरे-धीरे तैयार हो रहा था लेकिन सभी इसको देख सकते थे। टीम का हर सदस्य इसको महसूस कर रहा था। उस वक्त कुछ भी नहीं किया जा सका। उन्होंने आगे कहा कि यह सुखद नहीं था लेकिन जब आप अपने देश के लिए खेलते हैं तो माना जाता है कि आप एंन्जॉय करेंगे। जॉनसन ने आगे कहा कि हम सब के लिए यह बेहद ही खराब अनुभव और समय रहा। जॉनसन और क्लार्क के रिश्तों में 2013 के बाद खटास आ गई। इस पर जॉनसन ने कहा कि मुझे इस बारे में नहीं पता कि ऐसा क्यों हुआ लेकिन हां मैं भी अन्य लोगों की तरह महसूस कर रहा था। 35 वर्षीय जॉनसन ने अपनी बायोग्राफी रीजिलिएन्ट में क्लार्क संग अपने रिश्तों का जिक्र किया है।  यह लड़ाई किस हद तक जाएगी और इसमें अभी और कौन-कौन से किरदार कूदेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।  बहरहाल, इन सब के बीच यह तो स्पष्ट हो गया है कि ऑस्ट्रेलिया के पूर्व खिलाड़ी अभी अपनी सारी एनर्जी आपसी लड़ाई में लगा रहे हैं और टीम की तरक्की से किसी को कोई वास्ता नहीं रह गया है।

Sunday, 23 October 2016

ट्रंप में हमारी दिलचस्पी क्यों?

अमेरिका में किसकी सरकार बनेगी, इस पर जितनी बहस वहां हो रही है उससे कहीं ज्यादा चर्चा भारतीय सोशल मीडिया पर है। भारतीय सोशल मीडिया पर आए दिन हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप ट्रेंड कर रहे हैं।  एक सर्वे में पता चला है कि इन दिनों भारत का हर चौथा यूजर अमेरिका चुनाव से संबंधित ट्वीट कर रहा है। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से अस्सी फीसदी ट्वीट या फेसबुक पोस्ट रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के लिए हो रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या सच में भारतीय सोशल मीडिया के धुरंधर अमेरिका की राजनीति में इतनी दिलचस्पी रख रहे हैं या फिर इसका कुछ और हीं खेल है? आइए हम समझाते हैं इस गणित को। दरअसल, चुनाव को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी मीडिया मुगल डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर कब्जा जमा रखा है और उन्होंने इसका जाल भारत तक फैलाया है। डोनाल्ड ट्रंप ने करीब साल भर पहले ही इसकी शुरुआत कर दी थी। यहां तक कहा जाने लगा था कि डोनाल्ड ट्रंप किसी पार्टी के नहीं, ट्विटर के उम्मीदवार हैं। बहरहाल, भारत में ट्रंप के लिए काम उत्तर प्रदेश के नोएडा से साइबर टीम कर रही है। “जनमत कॉनेक्ट” नाम की इलेक्शन कैंपेन मैनेजमेंट करने वाली ये टीम अमेरिकी प्रवासी भारतीयों को ट्रंप के पक्ष में समर्थन देने के लिए कॉंटेंट डेवलपमेंट का काम कर रहे हैं। इस टीम के क्रिएटिव हैड गिरीश पाण्डेय के मुताबिक “जनमत कॉनेक्ट” की टीम इंडिया सपोर्ट ट्रंप, ट्रस्ट ट्रंप और गियर अप ट्रंप तीन तरह के अभियान के लिए कॉन्टेंट डेवलपमेंट कर रही है।  इस काम को करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप की समर्थक मेरिमा विचर भी सहयोग दे रही हैं। वह ट्रंप के ऊपर एक किताब लिख चुकी हैं और उनके चुनावी अभियान प्रबंधन की टीम का अहम हिस्सा हैं।  इस टीम का मकसद अमेरिका में रह रहे प्रवासी भारतीय वोटरों को लुभाना होता है। अमेरिकी चुनाव के दौरान डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ और जिक्र करना इसी रणनीति का हिस्सा है। यहां से टीम कई तरह के सलाह देती है।

सोशल फ्रेंडली हैं अमेरिकी युवा
एक अमेरिकी संगठन के शोध में पता चला कि वहां 18 से 24 साल तक के युवाओं के बीच सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा संपर्क सूत्र है। यह वर्ग सबसे पहले सोशल मीडिया पर कोई भी जानकारी हासिल करता है। इस आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या 34 प्रतिशत बताई जाती है। अमेरिका में हुई एक अन्य रिसर्च के अनुसार 15 से 25 वर्ष की आयु के लोग 41 प्रतिशत हैं और वह अपने किसी भी राजनीतिक कार्य के लिए सोशल मीडिया पर ही चर्चा करना उचित समझते हैं। ये युवा सोशल वेबसाइट पर तो अपने विचारों को प्रकट करते ही है, साथ ही मोबाइल के एप्स पर भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बारे में टिप्पणियां और उनके वीडियो शेयर करते है।