फ्लैश बैक
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- साहनी ने वाकर को दी संजीवनी
हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग के अव्वल नंबर के हास्य कलाकार जानी वाकर का फिल्मों में आना किसी फिल्मी कहानी से कम दिलचस्प नहीं था। अपने पिता की नौकरी छूटने के बाद 15 सदस्यों के बडे़ परिवार का भरण - पोषण करने के लिए सब्जी बेचने से लेकर बस में कंडक्टरी करने तक का काम करने को मजबूर जानी वाकर का मूल नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी था। मुंबई में बस में कंडक्टरी करते समय वाकर मुसाफिरों का तरह - तरह से मनोरंजन किया करते थे। इसी दौरान निर्देशक गुरुदत्त की फिल्म ‘बाजी’ के लिए कहानी लिख रहे बलराज साहनी की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने वाकर को इस फिल्म में काम दिलाने का मन बना लिया। बलराज साहनी ने जानी वाकर के लिए ‘बाजी’ में शराबी का एक छोटा सा महत्वपूर्ण पात्र भी डाल दिया लेकिन समस्या यह थी कि उन्हें फिल्म में लेने के लिए निर्माता और निर्देशक को किस तरह मनाया जाए। इसके लिए उन्होंने एक तरकीब सोची । साहनी ने वाकर से कहा कि तुम नवकेतन (जहां चेतन आनंद , गुरुदत्त और साहनी काम करते थे ) के दफ्तर में बिना रोक टोक के घुस जाना। वाकर ने भी ऐसा ही किया और चपरासी के रोकने के बावजूद दफ्तर के अंदर चले आए । उन्होंने लोगों को खूब तंग किया और गुरुदत्त के दोस्त देव आनंद (जो वहीं मौजूद थे ) को संबोधित करके अंट - शंट बोलने लगे। लेकिन उनके पियक्कड़ अंदाज और हरकत से नवकेतन के कर्मचारियों को खूब हंसी आई। चेतन को दफ्तर की मर्यादा का खयाल आया। उन्होंने बेतहाशा हंस रहे कर्मचारियों को डांटा और उस शराबी को जबरदस्ती बाहर निकालने का हुक्म दिया । उसी समय बलराज साहनी ने बदरू ( जानी वाकर ) से गुरुदत्त और चेतन को सलाम करने के लिए कहा। वाकर उसी समय अटेंशन हो गया और किसी मदारी की तरह सबको सलाम करने लगे। कुछ क्षण पहले जो व्यक्ति मदहोश था, अब पूरी तरह होश में था। चेतन और गुरुदत्त प्रश्नवाचक दृष्टि से बलराज साहनी की ओर देख रहे थे। तब साहनी ने बताया कि यह सारा प्रपंच क्यों रचा गया है। इसके बाद गुरुदत्त ने बड़ी खुशी से वह रोल बदरुद्दीन को देना कबूल कर लिया। ‘बाजी’ फिल्म के साथ ही जानी वाकर और गुरुदत्त की अटूट मैत्री का सिलसिला शुरू हो गया, जो गुरुदत्त की मौत होने तक कायम रहा। दिलचस्प बात यह है कि बदरुद्दीन को वाकर का नाम गुरुदत्त ने ही व्हिस्की के एक प्रसिद्ध ब्रांड ‘जानी वाकर’ के नाम पर दिया था। वाकर के बारे में एक और अहम बात यह है कि उन्होंने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया।
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- साहनी ने वाकर को दी संजीवनी
हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग के अव्वल नंबर के हास्य कलाकार जानी वाकर का फिल्मों में आना किसी फिल्मी कहानी से कम दिलचस्प नहीं था। अपने पिता की नौकरी छूटने के बाद 15 सदस्यों के बडे़ परिवार का भरण - पोषण करने के लिए सब्जी बेचने से लेकर बस में कंडक्टरी करने तक का काम करने को मजबूर जानी वाकर का मूल नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी था। मुंबई में बस में कंडक्टरी करते समय वाकर मुसाफिरों का तरह - तरह से मनोरंजन किया करते थे। इसी दौरान निर्देशक गुरुदत्त की फिल्म ‘बाजी’ के लिए कहानी लिख रहे बलराज साहनी की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने वाकर को इस फिल्म में काम दिलाने का मन बना लिया। बलराज साहनी ने जानी वाकर के लिए ‘बाजी’ में शराबी का एक छोटा सा महत्वपूर्ण पात्र भी डाल दिया लेकिन समस्या यह थी कि उन्हें फिल्म में लेने के लिए निर्माता और निर्देशक को किस तरह मनाया जाए। इसके लिए उन्होंने एक तरकीब सोची । साहनी ने वाकर से कहा कि तुम नवकेतन (जहां चेतन आनंद , गुरुदत्त और साहनी काम करते थे ) के दफ्तर में बिना रोक टोक के घुस जाना। वाकर ने भी ऐसा ही किया और चपरासी के रोकने के बावजूद दफ्तर के अंदर चले आए । उन्होंने लोगों को खूब तंग किया और गुरुदत्त के दोस्त देव आनंद (जो वहीं मौजूद थे ) को संबोधित करके अंट - शंट बोलने लगे। लेकिन उनके पियक्कड़ अंदाज और हरकत से नवकेतन के कर्मचारियों को खूब हंसी आई। चेतन को दफ्तर की मर्यादा का खयाल आया। उन्होंने बेतहाशा हंस रहे कर्मचारियों को डांटा और उस शराबी को जबरदस्ती बाहर निकालने का हुक्म दिया । उसी समय बलराज साहनी ने बदरू ( जानी वाकर ) से गुरुदत्त और चेतन को सलाम करने के लिए कहा। वाकर उसी समय अटेंशन हो गया और किसी मदारी की तरह सबको सलाम करने लगे। कुछ क्षण पहले जो व्यक्ति मदहोश था, अब पूरी तरह होश में था। चेतन और गुरुदत्त प्रश्नवाचक दृष्टि से बलराज साहनी की ओर देख रहे थे। तब साहनी ने बताया कि यह सारा प्रपंच क्यों रचा गया है। इसके बाद गुरुदत्त ने बड़ी खुशी से वह रोल बदरुद्दीन को देना कबूल कर लिया। ‘बाजी’ फिल्म के साथ ही जानी वाकर और गुरुदत्त की अटूट मैत्री का सिलसिला शुरू हो गया, जो गुरुदत्त की मौत होने तक कायम रहा। दिलचस्प बात यह है कि बदरुद्दीन को वाकर का नाम गुरुदत्त ने ही व्हिस्की के एक प्रसिद्ध ब्रांड ‘जानी वाकर’ के नाम पर दिया था। वाकर के बारे में एक और अहम बात यह है कि उन्होंने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया।
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