Friday, 24 June 2016

13 लाख वोटों ने बदला ब्रिटेन का भविष्य

 ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन (ईयू) से अलग हो गया है। गुरुवार को कराए गए जनमत संग्रह में 52 फीसदी लोगों ने ‘ब्रेग्जिट’ के पक्ष में मतदान किया, वहीं 48 फीसदी वोट ‘रीमेन’ के पक्ष में पड़े। शुक्रवार को नतीजे साफ होने के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस्तीफे की घोषणा कर दी। पीएम ने कहा कि वह जनता के फैसले का सम्मान करते हैं और अक्तूबर में उनके कार्यालय में एक नया प्रधानमंत्री आ जाएगा। कैमरन ने उम्मीद जताई कि ईयू से अलग होने के फैसले से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। उन्होंने कहा कि देश के आर्थिक हालात अच्छे हैं। हालांकि ब्रिटेन के ईयू से अलग होने की प्रक्रिया में पूरे दो साल लग जाएंगे। ब्रिटिश मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन ने इस जनमत संग्रह के जरिए 43 साल बाद ईयू की सदस्यता छोड़ने का निर्णय लिया है। मतदान प्रक्रिया में 4.6 करोड़ लोगों ने भाग लिया। ईयू में रहने को लेकर जहां 1.16 करोड़ वोट पड़े, वहीं ईयू छोड़ने के पक्ष में 1.74 लोगों ने मतदान किया। करीब 4 फीसदी के अंतर के साथ ब्रिटेन के 13 लाख लोगों ने अपने देश का भविष्य बदल डाला।  

बाजार में हाहाकार, पाउंड में 31 साल की बड़ी गिरावट
जनमत संग्रह के नतीजों के बाद दुनिया और खासतौर से एशियाई शेयर बाजार में हाहाकार मच गया। यूरोप के सभी बाजार गिरावट के साथ बंद हुए तो जापान का निक्कई काफी नीचे चला गया। वहीं पाउंड में 31 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। यह 1.3229 डॉलर तक पहुंच गया। पाउंड के अलावा ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, न्यूजीलैंड डॉलर, मैक्सिकन पैसो, दक्षिण अफ्रीका के रेंड और स्विटजरलैंड, नार्वे, पोलेंड की मुद्रा में भी गिरावट देखी गई। वहीं, भारतीय शेयर बाजार में बीएसई 604.51 अंकों की गिरावट के साथ 26,397.71 पर बंद हुआ। एनएसई 181.85 अंकों की गिरावट के साथ 8,088.60 पर बंद हुआ। 

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क्या है यूरोपियन यूनियन
यूरोपियन यूनियन 28 देशों का महासंघ है, जिसकी संसद में यूरोप के सभी देश अपने चुने हुए सदस्यों को भेजते हैं। इसकी कार्यपालिका में यूरोपियन कमीशन का एक अध्यक्ष होता है, और एक कैबिनेट भी, जिसमें सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं। ब्रिटेन वर्ष 1973 से यूरोपियन यूनियन का हिस्सा है, लेकिन इसके बावजूद वह शेष यूरोप से हमेशा आशंकित ही रहा है, जहां बाकी यूरोपीय देशों ने शेनजेन एग्रीमेंट के बाद अपनी सीमाओं से आना-जाना काफी आसान कर दिया, वहीं ब्रिटेन इसके लिए तैयार नहीं हुआ। इसके अलावा बाकी यूरोपीय देशों ने एक ही मुद्रा ‘यूरो’ को अपना लिया, जबकि ब्रिटेन इससे भी बाहर रहा। वह यूरो के लिए अपनी मुद्रा पाउंड स्टर्लिंग को छोड़ने के लिए कभी राजी नहीं हुआ। जिन देशों ने यूरो को अपनाया उनकी इमिग्रेशन पॉलिसी भी एक जैसी तय हुई। रक्षा, आर्थिक क्षेत्र और विदेश नीति पर भी एक राय में फैसले लिए जाने लगे। एक वीजा से पूरे यूरोपीय यूनियन में एंट्री हो सकती है।

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ब्रेक्जिट
‘ब्रेक्जिट’ शब्द दो शब्दों ‘ब्रिटेन’ और ‘एक्जिट’ से मिलकर बनाया गया। लेकिन इसे लेकर ब्रिटेन में दो गुट बन गए। एक का मत ‘रीमेन’ यानी ईयू में बने रहना था, जबकि दूसरे गुट का मत ‘लीव’ यानी ईयू छोड़ देना था।

‘रीमेन’ बनाम ‘लीव’
यूरोपियन यूनियन से बाहर होने यानी ‘लीव’ गुट की दलील थी कि देश की पहचान, आजादी और संस्कृति खतरे में हैं। इसे बचाने के लिए ईयू से अलग होना चाहिए। गुट प्रवासियों पर भी सवाल उठा रहा था। एक दलील यह भी थी कि ईयू ब्रिटिश करदाताओं के अरबों पाउंड ले लेता है, जबकि बदले में उस पर अलोकतांत्रिक फैसले थोपता है। यूरोपियन यूनियन में बने रहने के पक्षधर ‘रीमेन’ गुट की दलील थी कि ऐसा करना अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होगा। प्रवासियों का मुद्दा बेहद छोटा है।

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इसलिए हुआ जनमत संग्रह
ब्रिटेन में लंबे समय से यह कहा जा रहा था कि यूरोपियन यूनियन (ईयू) अपने सिद्धांतों से भटक गया है। दलील दी जा रही थी कि यूनियन में शामिल होने के कारण ब्रिटेन अपनी आर्थिक और विदेशी नीति को लेकर आजादी के साथ फैसले नहीं ले पा रहा है। ईयू से अलग होने पर ब्रिटेन अपनी इमिग्रेशन पॉलिसी को लेकर भी खुद फैसले ले सकेगा। डेविड कैमरन जब पीएम बने तो उन्होंने घोषणा की थी कि वह जनमत संग्रह कराएंगे। ब्रिटेन में इंग्लैंड, वेल्स, स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड शामिल हैं।

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फायदा
99 हजार 300 करोड़ की सालाना बचत होगी

ईयू में बने रहने के लिए ब्रिटेन को सालाना 99 हजार 300 करोड़ रुपये फीस चुकानी होती है। यह बचेगी। ईयू में दस हजार अधिकारी काम करते हैं। इसमें कई पूर्व राजनेता है, जो राजनीतिक पारी खत्म होने के बाद वहां प्रवेश कर जाते हैं। इन्हें मोटी रकम सैलरी के तौर पर मिलती है, जो ब्रिटिश पीएम की सैलरी से भी ज्यादा है। ईयू के देशों के मुकाबले ब्रिटेन दुनिया को दोगुना निर्यात करता है। ईयू से बाहर आने पर उसके लिए मुक्त व्यापार के दरवाजे खुलेंगे। सबसे अहम कि ब्रिटेन प्रवासियों के आने पर रोक लगा सकेगा, जिनकी पूर्वी यूरोप में संख्या 20 लाख के करीब है।

नुकसान
लेकिन 100 अरब पौंड तो तुरंत ही डूब जाएंगे

ईयू से बाहर होने पर ब्रिटेन को 100 अरब पौंड का नुकसान हो सकता है। दस लाख नौकरियां डूबने का भी खतरा है। फन्फेडरेशन ऑफ ब्रिटिश इंडस्ट्री के अध्ययन के मुताबिक, ब्रिटेन लंबे समय तक आर्थिक मुश्किल से जूझेगा। घरेलू आय 2100 पौंड और 3700 पौंड के बीच घट जाएगी। बेरोजगारी की दर 5.1 फीसदी से बढ़कर आठ फीसदी तक जा सकती है।


05वीं बड़ी अर्थव्यवस्था है ब्रिटेन दुनिया की, दायरा ती हजार अरब डॉलर।

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भारत पर असर
रुपया
- परिणाम आते ही 60 पैसे लुढ़क कर डॉलर के मुकाबले 68.85 पर पहुंचा रुपया। आरबीआई ने दखल दिया, तब सुधरा। रुपया और गिरा तो भारत के लिए कच्चा तेल खरीदना महंगा हो जाएगा।

इंडस्ट्री
ब्रिटेन में 800 भारतीय कंपनियां हैं। ब्रिटेन से ईयू से बाहर होने पर इन कंपनियों के कारोबार पर असर होगा, क्योंकि ज्यादातर यूरोप के खुले बाजार में बिजनेस कर रही है। 1.1 लाख लोगों को रोजगार देने वाली इन कंपनियों को ईयू और ब्रिटेन को अलग-अलग टैक्स देना होगा। टाटा मोटर्स, एयरटेल और कई फार्मा कंपनियों की चुनौती बढ़ सकती है।

नौकरी
भारत के अलग-अलग हिस्सों से लोग यूरोप में नौकरी के लिए जाते हैं। आंकड़ों के मुतबिक, ब्रिटेन में 20 हजार गोवा के लोग पुर्तगाल के पासपोर्ट पर काम कर रहे हैं। ईयू से अलग होने के बाद इन लोगों के लिए वहां काम करना मुश्किल हो जाएगा। पुड्डुचेरी के लोगों के पास भी पुर्तगाल का पासपोर्ट है, वह भी मुश्किल में आएंगे। पंजाब के लोगों की चुनौती भी बढ़ेगी।

शिक्षा
ईयू से समझौतों के कारण ब्रिटेन के स्कूल, कॉलेजों में अभी तक यूरोपीय छात्रों को छात्रवृत्ति और दाखिले में प्राथमिकता दी जाती है। अब ऐसा नहीं होगा। इससे भारतीय छात्रों के लिए ब्रिटेन में पढ़ाई के अवसर बढ़ेंगे।

मिस्टर परफेक्ट अनिल कुंबले

अगर आपसे कोई सवाल पूछे - ऐसा क्‍या है जो अनिल कुंबले को सबसे ज्‍यादा सम्‍माननीय और प्रेरणादायी भारतीय खिलाड़ी की पहचान दिलाता है? विकल्प हैं - फिरोजशाह कोटला में 74 रन देकर दस विकेट लेना? या वह नेतृत्‍व- जो विवादास्‍पद 'मंकीगेट' सीरीज के दौरान उन्‍होंने ऑस्‍ट्रेलिया में दिया था? या वह एकाग्रता - जिसमें मैच फिक्सिंग के दौर में भी कुंबले ने अपने क्रिकेट जीवन का बेस्ट परफॉर्मेंस दिया। या वह जज्‍बा- जो उन्‍होंने एंटीगा (2002) में जबड़ा टूटा होने के बावजूद गेंदबाजी करते हुए दिखाया था? तो जवाब है: ऊपर दिए ये सभी। लंबे समय तक मूंछे रखने और सज्जन से दिखने वाले कुंबले ने इंजीनियरिग की पढ़ाई की है। वह मैदान के बाहर भी और अंदर भी किसी इंजीनियर सरीखे ही दिखते हैं, सीधे और भोले से। चेहरे से भोले दिखने वाले अनिल कुंबले बतौर गेंदबाज कितने 'दबंग' रहे हैं?, जिन्होंने उनके सामने बल्लेबाजी की है, वो सब समय - समय पर बताते रहे हैं। कुंबले के रिकॉर्ड और उनकी शख्सियत के बारे में क्रिकेट की समझ रखने वाला हर इंसान जानता है लेकिन बहुत कम लोग इस रोचक तथ्य को जानते होंगे कि 6.2 इंच के अनिल के नाम के साथ लगा 'कुंबले' उनकी जाति नहीं बल्कि गांव का नाम है। बंगलोर में जन्में, कुंबले को कम उम्र से ही क्रिकेट में रूचि पैदा हो गई थी। वह बी एस चंद्रशेखर जैसे क्रिकेटरों का खेल देखते हुए बडे हुए। कुंबले का वैवाहिक जीवन भी बेहद ही दिलचस्प रहा है। उनका दिल तलाकशुदा चेतना पर आया। चेतना की पहले पति से एक बेटी आरुनी  भी थी लेकिन कुंबले ने उसे हाथों हाथ लिया और 1999 में शादी कर ली। शादी के बाद उनके दो बच्चे, बेटा मायस कुंबले और बेटी स्वास्ती हुए।  कुंबले ने अपने सम्‍मान और त्‍याग को टीम और परिवार के हित से ऊपर कभी नहीं रखा। जब जरूरत पड़ी तो उन्होंने पत्नी चेतना के लिए उनके पहले पति से कानूनी लड़ाई भी लड़ी । यह लड़ाई बेटी को हासिल करने की थी। कुंबले ने इस लड़ाई में चेतना का हर कदम पर साथ दिया और उनकी शख्सियत के मुताबिक उन्हें जीत भी मिली। कोई यह कैसे भूल सकता है जब वेस्टइंडीज में भारत का मैच हो रहा था। उस वक्त कुंबले को पहले कहा गया कि वो मैच में खेल रहे हैं, फिर कहा गया कि नहीं खेल रहे हैं, फिर दोबारा से कहा गया कि खेल रहे हैं।  कुंबले जिंक का पेंट लगाकर मैदान का चक्कर काट रहे थे। आख़िरकार जब टीम की घोषणा हुई तो उसमें कुंबले का नाम नहीं था। एक सीनियर खिलाड़ी के साथ इस तरह का बर्ताव हुआ, लेकिन जब भारत टेस्ट मैच जीत गया तो सबसे अधिक खुश जो खिलाड़ी था वो थे अनिल कुंबले। उस वक्त वो अपने कैमरे से पूरी टीम की खुशी मनाते हुए फोटो खींच रहे थे। कुंबले के साथ यह हरकत कप्तान सौरव गांगुली ने की थी फिर भी वह कुंबले को 'जेंटलमैन' कहते हैं क्‍योंकि उन्‍होंने कभी निजी मनमुटाव को सामने नहीं आने दिया। हां, एक बार हुआ था कुछ ऐसा जब 2001 में अपनी कंधे की सर्जरी के बाद से कुंबले खराब दौर से गुजर रहे थे। 2003-04 की ऑस्‍ट्रेलिया सीरीज के ब्रिसबेन टेस्‍ट के लिए गांगुली ने जो अंतिम 11 खिलाड़ी तय किए, उसमें कुंबले को बाहर कर हरभजन को शामिल किया। पहले दिन का खेल खत्‍म होने के बाद जब टीम होटल पहुंची तो गांगुली अपने परिवार के साथ हो लिए लेकिन शाम को ही कुंबले ने उनके कमरे का दरवाजा खटखटाया और बोले, 'मैं इस टेस्‍ट के खत्‍म होते ही संन्‍यास लेना चाहता हूं और जल्‍द से जल्‍द घर वापस जाना चाहता हूं।' गांगुली के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। वह कुछ पल के लिए कुंबले का चेहरा देखते रह गए। आखिर उन्‍होंने भीतर से अपनी पत्‍नी डोना को बुलवाया और मिस्टर परफेक्ट कुंबले को समझाने को कहा। और संयोग देखिए, हरभजन की उस टेस्‍ट में अंगुली टूट गई और उन्‍हें सर्जरी करानी पड़ी। बाकी सीरीज के लिए कुंबले टीम में आए और उन्‍होंने अगले तीन टेस्‍ट में 24 विकेट लिए।

प्रोफाइल
अनिल कुंबले
मुख्य भूमिका - लेग स्पिनर



क्रिकेट करियर
फॉर्मेट    मैच    रन       विकेट    बेस्ट     100    50    इकोनॉमी    4     5ू    10 (विकेट)
टेस्ट -132    2506    619    10/74    1      5    29.65     31  35    8
वनडे - 271    938     337    6/12      0      0    30.89      8     2     0
टी 20 - 54    46        57    5/5         0     0    24.36      2     1     0  (आईपीएल में )



टेस्ट डेब्यू : इंग्लैंड बनाम भारत (अगस्त 1990, मैनेचेस्टर )  
आखिरी टेस्ट : भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया (अक्तूबर 2008, दिल्ली)

वनडे डेब्यू : भारत बनाम श्रीलंका  (अप्रैल 1990, शारजाह )
आखिरी वनडे :  भारत बनाम बरमूडा (मार्च 2007, पोर्ट ऑफ स्पेन  )



जज्बे की मिसाल
कुंबले न सिर्फ  अपनी बेहतरीन गेंदबाजी के लिए जाने जाते हैं बल्कि उनको संघर्षशील खिलाड़ी के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा ही एक वाकया 2002 में टीम इंडिया के वेस्टइंडीज दौरे पर एंटीगुआ टेस्ट के दौरान देखने को मिला जब जबड़ा टूटने के बावजूद टीम की जरूरत को देखते हुए पूरे चेहरे पर पट्टी बांधकर वह मैदान पर उतरे और विपक्षी टीम के सबसे मजबूत खिलाड़ी ब्रायन लारा का महत्वपूर्ण विकेट भी टीम के लिए हासिल किया।





Tuesday, 14 June 2016

बॉलीवुड की बिसात पर विद्या की उल्टी चाल!

विद्या बालन, अमिताभ बच्चन और नवाजुद्दीन सिद्दीकी स्टाररइ हालिया फिल्म 'तीन'को समीक्षकों से सराहना तो मिल रही है लेकिन कमाई के मामले में यह औंधे मुंह गिरती नजर आ रही है। हालांकि इस फिल्म में विद्या का कैमियो रोल है बावजूद इसके जानकारों का मानना है कि इसकी असफलता उनके कैरियर को प्रभावित कर सकती है।
 


कुछ वर्ष पहले अभिनेत्री विद्या बालन ‘द डर्टी पिक्चर’, ‘कहानी’ जैसी फिल्मों के साथ अपने कैरियर के शीर्ष पर थीं और फिर उसके बाद एक ऐसा दौर आया जब उनकी फिल्में कुछ खास कमाल नहीं कर पाईं। विद्या को अपनी हालिया फिल्म 'तीन'से बहुत उम्मीद थी लेकिन कमाई में यह फिल्म भी फिसड्डी साबित हो रही है। विद्या के अलावा अमिताभ बच्चन और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे बड़े सितारों के होने के बावजूद इस फिल्म ने पहले दिन 2.70 करोड़ रुपये की कमाई की है। जबकि दूसरे दिन की बात करें तो 3.90 करोड़ कमा सकी है। वीकेंड खत्म होने के बावजूद फिल्म दस करोड़ के आंकड़े को भी पार करने में नाकाम रही।  मतलब साफ है कि इस असफलता ने विद्या की राह को एक बार फिर से कठिन कर दी है। इससे पहले विद्या की रोमांटिक फिल्म ‘हमारी अधूरी कहानी’ की ओपनिंग भी बेहद खराब रही थी। पहले दिन फिल्म ने सिर्फ पांच करोड़ का बिजनेस किया था। उस फिल्म को तो आलोचकों ने भी कुछ अच्छा नहीं कहा था। दरअसल, हर फिल्म के साथ विद्या कुछ नया तो करने की कोशिश कर रही हैं लेकिन बॉक्स ऑफिस की बिसात पर हर चाल सही बैठे ऐसा कहां हो पाता है।  ‘घनचक्कर’ में पंजाबी बीवी का रोल, ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ में भी पत्नी का रोल और बॉबी जासूस में जबरदस्त गेटअप के साथ दर्शकों को चौंका चुकी विद्या की ये फिल्में आखिरकार फ्लॉप रही थीं। फिर विद्या ने ‘हमारी अधूरी कहानी’ के जरिए लव स्टोरी पर सीधे-सीधे दांव खेला था। प्रमोशन के दौरान विद्या ने फिल्म की तुलना ‘सिलसिला’ और ‘आंधी’ जैसी ‘मैचयोर लवस्टोरी’ से की थी लेकिन दर्शकों की उम्मीद पर न तो विद्या की अदाकारी खरी उतर पाई और न ही कहानी। ऐस ही कुछ हाल फिल्म 'तीन' के साथ भी हो रहा है। इस फिल्म में विद्या बालन ने इंस्पेक्टर सरिता का किरदार निभाया है। जानकारों की मानें तो विद्या ने जब-जब कमर्शियल फिल्मों में हाथ आज़माना चाहा उन्हें असफलता मिली। किस्मत कनेक्शन, हे बेबी, थैंक्यू, सलाम-ए-इश्क, एकलव्य जैसी फिल्मों में उनकी सतही भूमिका को लेकर सवाल उठे थे हालांकि उनके अभिनय की तारीफ पहली फिल्म परिणिता से ही शुरू हो गई थी। परिणिता के बाद गुरु, पा, भूल भुल्लैया, इश्किया से लेकर द डर्टी पिक्चर..कहा जाने लगा था कि विद्या महिलाप्रधान फिल्में ही करती हैं और इन्हीं में उनकी अदाकारी निखरकर आती है लेकिन एक के बाद एक फ्लॉप ने सारे समीकरण बिगाड़ कर रख दिए हैं। विद्या का मुकाबला न सिर्फ अपने समकक्ष हीरोइनों से है बल्कि खुद से भी है। विद्या को अब फिल्म ‘कहानी’ के सीक्वल से उम्मीद है । इसके अलावा उनकी पहली मराठी फिल्म एक अलबेला भी इसी महीने रिलीज होने वाली है। फिल्म एक अलबेला में विद्या बालन ऐक्ट्रेस गीता बाली का किरदार निभा रही हैं। विद्या का कहना है कि इस फिल्म में गीता बाली के रूप में गेस्ट अपियरेंस के तौर पर नजर आने का कारण था कि मुझे वह बहुत ही चार्मिंग लगती हैं।'बहरहाल, देखना अहम होगा कि विद्या को सफलता कब हाथ लगती है।

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पूरे किए 11 साल
विद्या बालन को बॉलीवुड में लंबे स्ट्रगल के बाद साल 2005 में रिलीज हुई फिल्म परिणीता से पहचान मिली थी। अब जबकि विद्या को फिल्म इंडस्ट्री में 11 साल पूरे हो चुके हैं। विद्या का कहना है कि उन्हें बॉलीवुड से उम्मीद से भी ज्यादा मिला है और उन्हें जितने भी अवसर मिले हैं, उसके लिए वह हमेशा शुक्रगुजार रहेंगी।  विद्या बताती हैं कि 'एक वक्त था, जब मैं चाहती थी कि मेरी एक फिल्म रिलीज हो जाए। अब मुझे भरोसा नहीं हो रहा है कि मैंने इंडस्ट्री में 11 साल बिता दिए।



Sunday, 12 June 2016

अनुराग, अब लुढ़कता बिहार भी बना लो..


प्रिय अनुराग कश्यप,
सबसे पहले तो आप  पिछले कुछ दिनों से फिल्म उड़ता पंजाब के लिए जो संघर्ष कर रहे हैं उसकी मैं सराहना करता हूं लेकिन एक बात मैं भी कहना चाहता हूं कि आप भी बेवजह की गालियां ठूसते रहते हो। अब गैंग्स ऑफ बासेपुर को ही ले लो उसमें तो आपने गालियों की नई - नई प्रजाति का निजात किया है। बहरहाल, मैं आपको एक सलाह देना चाहता था। सलाह यह है कि आप अब फिल्म 'लुढ़कता बिहार' बनाइए। यकीं मानिए यह बंगाली बाबा के चूरन से भी ज्यादा लाभकारी होगा । आपको तो पता भी होगा कि आज - कल बिहार में एक गोली से ही इंसान लुढ़क जाता है। लुढ़काने वाला आपको कभी भी लुढ़का सकता है । इसके लिए कोई दिशा-निदेश नहीं है। बस बंदूक होनी जरूरी है और अगर नहीं भी है तो आप राजद के किसी छुटभैये नेता को जानते हैं तो समझो यही काफी है।  अच्छा, खास बात यह है कि लुढ़काने वाले सीना ताने घूम रहे हैं यानी आपको अभिनेता ढंढूने की भी दिक्कत नहीं होगी। अब बात एक और लुढ़कन की कर लेते हैं तो आज कल अपने यहां के टॉपर्स भी खूब लुढ़क रहे हैं। अगर आपकी फिल्म उड़ता पंजाब बिहार विद्यालय परीक्षा समिति देखती तो यकीं मानिए वहां के होनहार लोग फिल्म को टॉपर बना देते। वैसे आपकी छवि सोशल मीडिया में बेवड़ा की बना दी गई है ऐसे में हमारे राज्य के बेवड़े समाज के लोग भी आपसे एक फिल्म की उम्मीद कर रहे हैं। दरअसल, जब से शराबबंदी हुई है तब से बेवड़े लोग बंगाल, नेपाल, यूपी से शराब लाने की जद्दोजहद में लगे हैं और लाते भी हैं लेकिन खास बात यह है कि वह बोतल लाकर लुढ़कते अपने बिहार में ही हैं। लुढ़कने के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आपको एक और कहानी की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं । सुना है कि आजकल राज्य की विकास गति भी लुढ़क रही है लेकिन हां इसकी जांच जरूर कर लीजिएगा क्योंकि मेरे पास इसके पुख्ता सबूत नहीं हैं।

यह जानते हुए भी कि मेरी बात आप तक नहीँ पहुंचेगी, उम्मीद करता हूं कि मेरी सलाह पर ध्यान देंगे।

Sunday, 5 June 2016

एक योद्घा जो शांतिदूत था

यह फोटो शूट तब की है जब अली पर नस्लीय हमले हो रहे थे।
 जिस जमाने में अश्वेतों को खुल कर बोलने तक की इजाजत नहीं थी, उस जमाने में महान मोहम्मद अली का मुक्का उठा था और यह यूं ही थम जाने को नहीं उठा था बल्कि सदी का मुक्का बन जाने को उठा था।  अली सिर्फ एक मुक्केबाज ही नहीं थे, उनमें कवि, दार्शनिक, समाजसेवी, लेखक स‌हित तमाम बड़े गुण मौजूद थे।    


मोहम्मद अली का असली नाम क्या था, शायद बताने की जरूरत नहीं और न ही किसी को जानने में ज्यादा दिलचस्पी हो। दिलचस्पी तो उस शख्सियत को जानने में होनी चाहिए जो बैनर पोस्टर रंगने वाले का बेटा था और अपनी साइकिल चोरी हो जाने से दुनिया का सबसे बड़ा मुक्केबाज बन बैठा। दिलचस्पी तो इस बात को जानने में होनी चाहिए कि घूंसे के जोर पर नाम कमाने वाला ‌वह शख्स जीवन भर शांति का प्रतीक 'कबूतर' क्यों पालता रहा ? जब इस 'कबूतर' पालने के पीछे की वजह पूछा गया तो अली ने बताया था कि इस पक्षी से शांत रहने की प्रेरणा मिलती है। मोहम्मद अली वह शख्स हैं जिन्होंने खुद को महान भी बताया तो सनकी भी। जब एक बार पत्रकार ने अली से पूछा कि वह खुद को कैसे याद किया जाना पसंद करेंगे। उन्होंने कहा था कि एक ऐसे इंसान की तरह जिसने कभी अपने लोगों का सौदा नहीं किया लेकिन अगर वह बहुत ज्यादा है तो आप कह सकते हैं कि मैं महज एक अच्छा बॉक्सर था और तब मैं इस बात का भी बुरा नहीं मानूंगा कि आपने मुझे सुंदर नहीं कहा।  साठ के दशक में जो अश्वेतों के लिए मार्टिन लूथर किंग ने सपना देखा, उस सपने को सबसे पहले मोहम्मद अली ने ही सच किया। कहते हैं कि अली 1960 में रोम ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर जब अमेरिका में एक रेस्टोरेंट में डिनर करने गए तो वेटर नेएक अश्वेत को सर्व करने से मना कर दिया। इस अपमान से आहत अली ने बाहर आकर गुस्से में अपना गोल्ड मेडल यह कहते हुए फेंक दिया कि जिस देश में इस कदर रंगभेद हो, वहां का मेडल मुझे नहीं पहनना है। अली के इस कदम ने अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को एक ही झटके में सार्वजनिक मंच पर ला दिया। पूरी दुनिया में अमेरिका की थू-थू हुई तो अली की वाहवाही। अली ने अश्वेतों के लिए दक्षिण अफ्रीका के गांधी नेल्सन मंडेला से भी मदद ली।  जिंदगी के आखिरी पड़ाव में भी अली ने सामाजिक द्वेष के खिलाफ आवाज उठाई। कुछ माह पहले ही उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप के मुसलमानों पर घृणित बयान की आलोचना की थी।  ट्रंप का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि मुसलमानों को उन लोगों के खिलाफ खड़े होना पड़ेगा जो इस्लाम का इस्तेमाल निजी फायदे के लिए करते हैं।'  ट्रंप के बयान की ओर इशारा करते हुए कहा था कि ऐसा करके ट्रंप ने कइयों को इस्लाम के बारे में जानने से रोक दिया है। उन्होंने इस्लामिक स्टेट के जिहादियों की हिंसक गतिविधियों की भी कड़ी आलोचना की। वह कहते थे कि वह मुकाबला जीतेंगे और जीत भी जाते। वह यहां तक कह देते कि किस राउंड में जीतेंगे और उस राउंड तक उनकी जीत भी हो जाती लेकिन दुनिया उन्हें समझ चुकी थी। वह जान चुकी थी कि छह फीट तीन इंच का यह नौजवान यूं ही दावे नहीं करता।  दस्ताने टांगने के बाद जब भी ये हाथ उठते थे या तो दुआ के लिए या फिर समाज के लिए।  गरीब देशों की बात हो या उनके अपने लूजियाना प्रांत की, गरीबों की मदद करने से वह जरा भी नहीं हिचकिचाते थे।  जिस वक्त वह अपने कैरियर के सर्वश्रेष्ठ दौर में थे, उनकी बॉक्सिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया क्योंकि वह फौज में  शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे। अमेरिका ने वियतनाम के खिलाफ लड़ाई खोल दी थी, जिसका वह खुल कर विरोध कर रहे थे। 1971 में उनकी अपील पर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ये बैन हटाया। उनके मुक्के पर ताला जड़ दिया गया लेकिन भला हिम्मत को कौन रोक सकता था।  वह रिंग में लौटे, तो जबरदस्त विस्फोट हुआ। साठ के दशक का मोहम्मद अली सत्तर के दशक में भी चैंपियन बन बैठेद। इस दौरान 1971 में सदी की सबसे बड़ी मुक्केबाजी जंग भी हुई, जब वह जो फ्रेजियर से भिड़े। उस बार हार गए लेकिन दूसरी बार में जीत हासिल की। कई संस्थाओं ने 1999 में मोहम्मद अली को पिछली सदी का महानतम खिलाड़ी घोषित किया। अमेरिका ने झुक कर उन्हें सलाम किया। अली की जिंदादिली का अंदाजा इस बात से लगता है कि इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने 1990 में कुवैत पर हमला करके 2000 से ज्यादा विदेशियों को बंधक बना लिया था। बंधकों को छुड़ाने के लिए मोहम्मद अली सद्दाम से बातचीत करने बगदाद पहुंचे। अली के साथ 50 मिनट की बातचीत के बाद सद्दाम ने 15 अमेरिकी बंधकों को छोड़ दिया था। वह अगली पीढ़ी के  मैजिक जॉनसन, कार्ल लुइस और टाइगर वुड्स के लिए मसीहा साबित हुए। अली ने खेल की दुनिया में अश्वेतों के लिए जो दरवाजे खोले, उसे भला कौन भूल सकता है। खेल की दुनिया उनका स्वागत करती है।

फाइट से पहले नहीं करते थे सेक्‍स
सदी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के खिताब से नवाजे जा चुके मुक्केबाज मोहम्मद अली के विषय में कहा जाता था कि वह रिंग में अपनी किसी भी बड़ी फाइट के पहले सेक्स करना बंद कर देते थे। यह समय कुछ लोगों के हिसाब से दो महीनों का होता था जबकि कुछ लोग मानते हैं कि बॉक्सर अली सिर्फ छ: हफ्तों के लिए ही खुद पर नियंत्रण रखते थे। मोहम्मद अली ने अपनी सेक्स अपील के लिए भी खास प्रसि‌‌िद्ध पाई और यहीं से इस विचार ने बहस को जन्म दिया कि क्या सेक्स और खिलाड़ियों के प्रदर्शन में कोई संबंध है?



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अली के अनमोल वचन
मोहम्मद अली एक महान मुक्केबाज होने के साथ-साथ एक अच्‍छे समाजसेवी भी थे। प्रस्‍तुत है ऐसे महान व्‍यक्ति द्वारा कहे गए कुछ अनमोल वचन –

दोस्ती कुछ ऐसा नहीं है जो आप स्कूल में सीखते है। लेकिन यदि आपने दोस्ती का मतलब नहीं सीखा तो दरअसल आपने कुछ नहीं सीखा।
मैं ट्रैनिंग के हर एक मिनट से नफरत करता था, लेकिन मैंने कहा , हार मत मानो। अभी सह लो और अपनी बाकी की जिंदगी एक चैंपियन की तरह जियो।
मुझे पता है मैं कहां जा रहा हूं और मुझे सच पता है, और मुझे वह नहीं होना है जो तुम चाहते हो। मैं वह होने के लिए स्वतंत्र हूं जो मैं चाहता हूं।
नदियां , तालाब , झीलें और धाराएं – इनके अलग-अलग नाम हैं, लेकिन इन सबमे पानी होता है ठीक वैसे ही जैसे धर्म होते हैं- उन सभी में सत्य होता है ।
मैं सबसे महान हूं, मैंने ये तब कहा जब मुझे पता भी नहीं था कि मैं हूं।
वह जो जोखिम उठाने का साहस नहीं रखता अपने जीवन में कुछ हासिल नहीं कर सकता।
जो आदमी पचास की उम्र में दुनिया को उसी तरह देखता है जैसा कि वह बीस में देखा करता था , ने अपने जीवन के तीस साल बर्बाद कर दिए हैं।
दृढ वचनो की पुनरावृत्ति विश्वास पैदा करती है। और एक बार जब वह विश्वास गहरी आस्था में बदल जाता है तो चीजें होने लगती हैं।
मैं इस्लाम धर्म में यकीन रखता हूं। मैं अल्लाह और शांति में यकीन रखता हूं।
 तितली की तरह उड़ो , मधुमक्खी की तरह काटो।
जिस व्यक्ति के पास कल्पना नहीं है उसके पास पंख नहीं हैं।
जो मुझे चलते रहने देता है वो है मेरा लक्ष्य ।
अपने सपनो को सच करने का सबसे अच्छा तरीका है जाग जाओ ।
 बुद्धिमत्ता ये जानना है कि कब आप बुद्धिमान नहीं हो सकते ।

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कुछ रोचक बातें
- मोहम्मद अली को फ्लाइट में बैठने और ऊंची उड़ान भरने से बहुत डर लगता था। जब वह 1960 के ओलंपिक में रोम जाने के लिए प्लेन में बैठे तो उन्होंने एयर होस्टेस से उन्हें पैराशूट पहनाने का निवेदन किया था।
- शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि मोहम्मद अली एक बेहतरीन बॉक्सर होने के साथ-साथ गायक, ऐक्टर और कवि भी थे।  उन्होंने अपना ऐल्बम ‘आई एम द ग्रेटेस्ट’ रिलीज किया था।
-  अली जब छोटे थे तो उन्होंने उस समय के फेमस बॉक्सर शुगर रे रॉबिंसन से ऑटोग्राफ मांगा था लेकिन रॉबिंसन ने उन्हें झिड़कते हुए कहा, 'मेरे पास समय नहीं है।' इस बात से अली को इतनी चोट पहुंची कि इसके बाद उन्होंने कभी भी अपने किसी फैन को ऑटोग्राफ के लिए मना नहीं किया।
- अली का प्रैक्टिस करने का तरीका बहुत ही निराला था, वह अपने भाई को खुद पर पत्थर फेंकने के लिए कहते थे और उन पत्थरों से खुद को बचाकर प्रैक्टिस करते थे।
- 1981 में मोहम्मद अली ने एक आदमी को मरने से बचाया था। दरअसल बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या की कोशिश कर रहे एक युवक को जब पुलिसकर्मी आत्महत्या न करने के लिए समझाने में असफल रहे तो मोहम्मद अली ने ये काम कर दिखाया। अली उस आदमी के पास वाली खिड़की से उस आदमी से आधे घंटे तक बात की और उसे यह मनाने में कामयाब रहे कि उसकी निजी जिंदगी में चल रही परेशानियां ठीक हो जाएंगी।
- बहुत कम लोगों को पता होगा कि मोहम्मद अली की बेटी लैला अली भी बेहतरी बॉक्सर रही हैं। अली के नौ बच्चों में सबसे छोटी लैला अली ने 24 मुकाबले लड़े और सभी में जीत हासिल की।  वह कभी न हारने वाली बॉक्सर के रूप में रिटायर हुईं।



अमर उजाला में प्रकाशित